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Sunday, May 6, 2012

जियो कर्तव्य के अधिकार में ! By Arvind Yogi


जियो कर्तव्य के अधिकार में 

हर डूबने वाला ये सोचता है 
गर सहारा मिलता तो निकल जाता 
लहरों से टकराता डूबता घबराता 
सामने ही शाहिल को नही देख पाता
मन के मंदिर में छिपे आराध्य को 
नहीं खोज पाता हर कोई 

पत्थरो में खोजे , जिसकी आत्मा सोई
मंदिरों में खोजे , भटका वैदेही 
पर घट घट में बसे भगवान को
नहीं खोज पाता है कोई 

डूब कर देखो ह्रदय की वेदना में 
पाओगे ह्रदय की चेतना में 
जो मौत से घबरा के जीना छोड़ दोगे 
दर्द मुस्करा के पीना छोड़ दोगे 
फिर ना कुछ मिलेगा दिल दुखेगा 
उम्मीदे इन्सान को बलवान बनती है
कर्म इन्सान की पहचान करती है 

कर्तव्य मिले या अधिकार 
पर सत्य है कर्तव्य का संसार 
डूबने के दर को छोड़ दो 
वक़्त की धार से खुद को जोड़ दो 
चल पड़ोगे तुम जिंदगी के साथ योगी 
मिलता नहीं कुछ दर्द के रात में 
जीवन है मुस्कराहट के सौगात में 
जियो कर्तव्य के अधिकार में !

यह कविता क्यों ? जीवन की नाव कर्तव्य के पाल से बहती है न की लहरों पर अधिकार से 
अरविन्द योगी

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