कायस्थ समाज की जाति व्यवस्था पर एस ए अस्थाना ने एक अध्ययन किया है. अपने अध्ययन की भूमिका में वे लिखते हैं कि “स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं, हम बाबू नने के लिए नहीं, हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिए पैदा हुए हैं जिन्होंने हमें जन्म दिया है।”
एक घटना का जिक्र करते हुए अस्थाना अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि एक बार स्वामी विवेकानन्द से भी एक सभा में उनसे उनकी जाति पूछी गयी थी. अपनी जाति अथवा वर्ण के बारे में बोलते हुए विवेकानंद ने कहा था “मैं उस महापुरुष का वंशधर हूँ, जिनके चरण कमलों पर प्रत्येक ब्राह्मण ‘‘यमाय धर्मराजाय चित्रगुप्ताय वै नमः’’ का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि प्रदान करता है और जिनके वंशज विशुद्ध रूप से क्षत्रिय हैं। यदि अपनें पुराणों पर विश्वास हो तो, इन समाज सुधारको को जान लेना चाहिए कि मेरी जाति ने पुराने जमानें में अन्य सेवाओं के अतिरिक्त कई शताब्दियों तक आधे भारत पर शासन किया था। यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता का शेष क्या रहेगा ? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, सबसे बड़े इतिहास वेत्ता, सबसे बड़े दार्शनिक, सबसे बड़े लेखक और सबसे बड़े धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक से भारत वर्ष को विभूषित किया है।’’
वर्ण व्यवस्था में कायस्थों के स्थान के बारे में विवरण देते हुए वे खुद स्पष्टीकरण देते हुए लिखते हैं कि “अक्सर यह प्रश्न उठता रहता है कि चार वर्णों में क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में कायस्थ किस वर्ण से संबंधित है। स्पष्ट है कि उपरोक्त चारों वर्णों के खाँचे में, कायस्थ कहीं भी फिट नहीं बैठता है। अतः इस पर तरह-तरह की किंवदंतियां उछलती चली आ रही है। उपरोक्त यक्ष प्रश्न “किस वर्ण के कायस्थ” का माकूल जबाब देने का आज समय आ गया है कि सभी चित्रांश बन्धुओं को अपने समाज के बारे में सोचने का अपनी वास्तविक पहचान का ज्ञान होना परम आवश्यक है।”
शिव आसरे अस्थाना ने इस संबंध में जो तथ्य जुटाएं है और अध्ययन किया है वे महत्वपूर्ण हैं. अहिल्या कामधेनु संहिता और पद्मपुराण पाताल खण्ड के श्लोकों और साक्ष्यों से वे साबित करते हैं कि कायस्थ सिर्फ जाति नहीं बल्कि पांचवा वर्ण है. नीचे दिये गये उदाहरण देखिए-
ब्राहस्य मुख मसीद बाहु राजन्यः कृतः।
उरुतदस्य वैश्य, पद्यायागू शूद्रो अजायतः।। (अहिल्या कामधेनु संहिता)
अर्थात् नव निर्मित सृष्टि के उचित प्रबन्ध तथा समाज की सुव्यवस्था के लिए श्री ब्रह्मा जी ने अपनें मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा चरणों से शूद्र उत्पन्न कर वर्ण ‘‘चतुष्टय’’ (चार वर्णों) की स्थापना की। सम्पूर्ण प्राणियों के शुभ-अशुभ कार्यों का लेखा-जोखा रखनें व पाप-पुण्य के अनुसार उनके लिये दण्ड या पुरस्कार निश्चित करने का दायित्ंव श्री ब्रह्मा जी ने श्री धर्मराज को सौंपा। कुछ समय उपरान्त श्री धर्मराज जी ने देखा कि प्रजापति के द्वारा निर्मित विश्व के समस्त प्राणियों का लेखा-जोखा रखना अकेले उनके द्वारा सम्भव नहीं है। अतः धर्मराज जी ने श्री ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि ‘हे देव! आपके द्वारा उत्पन्न प्राणियों का विस्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अतः मुझे एक सहायक की आवश्यकता है। जिसे प्रदान करनें की कृपा करें।
‘‘अधिकारेषु लोका नां, नियुक्तोहत्व प्रभो।
सहयेन बिना तंत्र स्याम, शक्तः कथत्वहम्।।’’ (अहिल्या कामधेनु संहिता)
श्री धर्मराज जी के निवेदन पर विचार हेतु श्री ब्रह्मा जी पुनः ध्यानस्त हो गये। श्री ब्रह्मा जी एक कल्प तक ध्यान मुद्रा में रहे, योगनिद्रा के अवसान पर कार्तिक शुल्क द्वितीया के शुभ क्षणों में श्री ब्रह्मा जी ने अपने सन्मुख एक श्याम वर्ण, कमल नयन एक पुरूष को देखा, जिसके दाहिने हाथ में लेखनी व पट्टिका तथा बायें हाथ में दवात थी। यही था श्री चित्रगुप्त जी का अवतरण।
‘‘सन्निधौ पुरुषं दृष्टवा, श्याम कमल लोचनम्।
लेखनी पट्टिका हस्त, मसी भाजन संयुक्तम्।।’’ (पद्मपुराण-पाताल खण्ड)
इस दिव्य पुरूष का श्याम वर्णी काया, रत्न जटित मुकुटधारी, चमकीले कमल नयन, तीखी भृकुटी, सिर के पीछे तेजोमय प्रभामंडल, घुघराले बाल, प्रशस्त भाल, चन्द्रमा सदृश्य आभा, शंखाकार ग्रीवा, विशाल भुजाएं व उभरी जांघे तथा व्यक्तित्व में अदम्य साहस व पौरूष झलक रहा था। इस तेजस्वी पुरूष को अपने सन्मुख देख ब्रह्मा जी ने पूछा कि आप कौन है? दिव्य पुरूष ने विनम्रतापूर्वक करबद्ध प्रणाम कर कहा कि आपने समाधि में ध्यानस्त होकर मेरा आह्नवान चिन्तन किया, अतः मैं प्रकट हो गया हूँ। मैं आपका ही मानस पुत्र हूँ। आप स्वयं ही बताये कि मैं कौन हूँ ? कृपया मेरा वर्ण- निरूपण करें तथा स्पष्ट करें कि किस कार्य हेतु आपने मेरा स्मरण किया। इस प्रकार ब्रह्माजी अपने मानस पुत्र को देख कर बहुत हर्षित हुये और कहा कि हे तात! मानव समाज के चारों वर्णों की उत्पत्ति मेरे शरीर के पृथक-पृथक भागों से हुई है, परन्तु तुम्हारी उत्पत्ति मेरी समस्त काया से हुई है इस कारण तुम्हारी जाति ‘‘कायस्थ’’ होगी।
मम् कायात्स मुत्पन्न, स्थितौ कायोऽभवत्त।
कायस्थ इति तस्याथ, नाम चक्रे पितामहा।। (पद्म पुराण पाताल खण्ड)
काया से प्रकट होनें का तात्पर्य यह है कि समस्त ब्रह्म-सृष्टि में श्री चित्रगुप्त जी की अभिव्यक्ति। अपनें कुशल दिव्य कर्मों से तुम ‘‘कायस्थ वंश’’ के संस्थापक होंगे। तुम्हें समस्त प्राणि मात्र की देह में अर्न्तयामी रूप से स्थित रहना होगा। जिससे उनकी आंतरिक मनोभावनाएं, विचार व कर्म को समझने में सुविधा हो।
‘‘कायेषु तिष्ठतति-कायेषु सर्वभूत शरीरेषु।
अन्तर्यामी यथा निष्ठतीत।।’’ (पद्य पुराण पाताल खण्ड)
ब्रह्माजी ने नवजात पुत्र को यह भी स्पष्ट किया कि ‘‘आप की उत्पत्ति हेतु मैने अपने चित्त को एकाग्र कर पूर्ण ध्यान में गुप्त किया था अतः आपका नाम ‘‘चित्रगुप्त’’ ही उपयुक्त होगा। आपका वास नगर कोट में रहेगा और आप चण्डी के उपासक होंगे।
‘‘चित्रं वचो मायागत्यं, चित्रगुप्त स्मृतो गुरूवेः।
सगत्वा कोट नगर, चण्डी भजन तत्परः।।’’ (पद्य पुराण पाताल खण्ड)
अपने इन उदाहरणों के जरिए वे साबित करते हैं कि कायस्थ पांचवा वर्ण है. अगर यह सच है तो कम से कम यह किताब भारत की वर्ण व्यवस्था को बड़ी चुनौती देती है. अभी तक की स्थापित मान्यताओं के उलट यह एक पांचवे वर्ण को सामने लाती है जिसका उल्लेख खुद स्वामी विवेकानन्द ने भी किया है. शिव आसरे अस्थाना मानते हैं कि वे खुद जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करते हैं लेकिन इसकी उपस्थिति और प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता.
लेकिन उनके इस अध्ययन से वह सवाल और जटिल हो जाता है जो वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में घालमेल करता है. कायस्थ वर्ण का अस्तित्व कोई आज का नहीं है. यह हजारों साल पुराना है. उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार से लेकर कश्मीर तक किसी न किसी काल में कायस्थ राजा रहे हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि अयोध्या में रघुवंश से पहले कायस्थों का ही शासन था. अगर पुरातन भारत में इस जाति/वर्ण का स्वर्णिम इतिहास रहा है तो आधुनिक भारत में डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, सुभाष चंद्र बोस और विवेकानंद इसी वर्ण या जाति व्यवस्था से आते हैं. लेकिन यहां सवाल इन महापुरुषों का जाति निर्धारण करना नहीं है बल्कि उस चुनौती को समझना है जो जाति और वर्ण का घालमेल करता है. जाति के नाम पर नाक भौं सिकोड़नेवाले लोग भले ही तात्विक विवेचन से पहले ही अपना निर्णय कर लें लेकिन शिव आसरे अस्थाना का यह काम निश्चित रूप से भारतीय जाति व्यवस्था को समझने के लिए लिहाज से एक बेहतरीन प्रयास है.
(www.pressnote.in/.../कायस्थ-सिर्फ-जाति-.)
बचपन से पढ़ता आया,चित्रगुप्त जी यमराज के यहाँ बतौर मुंशी हैं।उधर,प्राचीन पुस्तको में ये भी लिखा है कि चित्रगुप्त धर्म-अधर्म के आधार पर जीव को स्वर्ग या नर्क जाने का फैसला करते हैं। यमराज के दूत उसी निर्देश पर कार्रवाई करते हैं। सवाल कौंधता है,कि क्या राज्य का मुख्य न्यायाधीश,पुलिस महानिदेशक के अधीनस्थ होता है ? कृपया विचार करें, उत्तर से मुझे भी अवगत कराएंगे, तो आभारी रहूँगा। सादर, संदीप
ReplyDeleteSara Kam to munshi hi karte hai phir yamraj ji ko bhi bishwas hai chitragupt ji kabhi galat nahi karange to Jo wo likh dete hai wahi yamraj ji bhi mante hai. Yamraj ji ka Kam jiski ayu Puri ho gayi use yamduto se bula lete hai. Par uska hisab to chitraguptji hi karte hai.
Deleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeleteMost knowledge of kayastha (chtransh) community our pleasures
ReplyDeleteYou are right
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