वॉइस बॉक्स या लैरिंक्स में मौजूद वोकल कॉर्ड्स पर अत्यधिक तनाव पड़ने के कारण इनमें गांठ या नॉड्यूल्स बन जाती है। आमतौर पर यह स्थिति लंबे समय तक तेज़ आवाज़ में बोलने, बहुत ज़्यादा बोलने या चीखने-चिल्लाने से बनती है।
ये गांठें प्रायः छोटी-छोटी होती हैं और अंगूर जितनी बड़ी हो सकती हैं। किरेटीन से बनी इन गांठों का रंग सफेद-स्लेटी होता है। वोकल कॉर्ड पर इस तरह की गांठों का बनना पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, ये संभवतः वोकल कॉर्ड्स के सामान्य से अधिक टकराने के कारण बनती हैं। इससे वॉइस बॉक्स का कार्य प्रभावित होता है। हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि ज़्यादा बोलने या गाना गाने वाले ही अधिकतर प्रभावित क्यों होते हैं। इन गांठों के कारण व्यक्ति की आवाज़ कर्कश और अस्पष्ट हो जाती है।
इलाज
निदान के लिए कान नाक गला रोग विशेषज्ञ मिरर लैरिंगोस्कोपी तकनीक से वॉइस बॉक्स की जाँच करते हैं। यह तकनीक दर्द रहित होती है। इसके अलावा गांठ की बायोप्सी भी की जा सकती है। गांठ का आकार छोटा होने पर स्पीच थैरेपी से इलाज किया जाता है। इसके ज़रिए व्यक्ति को अपनी आवाज़ का सही ढ़ंग से उपयोग करना सिखाया जाता है ताकि वोकल कॉर्ड्स को अधिक क्षति से बचाया जा सके। प्रायः स्पीच थैरेपी से गांठ का आकार छोटा होने लगता है और ये धीरे-धीरे ग़ायब हो जाती हैं। बड़ी गांठों को माइनर सर्जरी या लेज़र सर्जरी द्वारा निकाला जा सकता है(डॉ. माधवी पटेल,सेहत,नई दुनिया,अप्रैल चतुर्थांक 2012)।
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