इंसानियत ,
डॉक्टर सिन्हा रोज की तरह आज भी क्लिनिक पर बैठे थे !वह अपने मरीजो को देखने में मग्न थे ! तभी किसी के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी !
" यह कैसी आवाज़ आ रही है !" उन्होंने अपने स्टाफ शंकर से पूछा !
शंकर बोला " साहब बाहर एक बच्चा खेलता हुआ कार के नीचे आ गया ! यह उसकी माँ की आवाज़ है ! "
"ओह ! क्या उसे क्या ज्यादा चोटें आई हैं !"
" हा साहब , उसके सर पर काफी चोटें आई है ! जगह जगह से चमड़ी छिल गयी है ! सर से खूब खून निकल रहा है ! "
अभी बात चल रही थी तभी किसी के कदमो की आवाज़ सुनाई पड़ी ! थोड़ी देर बाद एक औरत अपने गोद में एक बच्चा लिए आई !
उसे देख डॉक्टर साहब खड़े हो गए ! वह बोले " एह औरत अन्दर कहाँ चली आ रही है ! क्या खैरात का समझ लिया है !"
यह सुन कर वह सहम सी गयी ! उसे लगा मानो किसी अनजान दुनिया में आ गयी हो !
फिर उसने डॉक्टर साहब से कहा " साहब मेरे बच्चे को बचा लीजिये !देखिये इस मासूम जान को कितनी चोटें आई है ! यह कुछ बोलता भी नहीं है ! इसे बचा लीजिये , यह हमारी ममता की अंतिम आशा है ! "
डॉक्टर साहब व्यर्थ में काम करना नहीं चाहते थे ! पैसे लिए बिना वह किसी को नहीं देखते थे ! यह सही भी था क्योंकि उन्होंने बहुत पैसा खर्च करके यह पढाई की थी !इसलिए वह पैसों को यूँ जाने नहीं देना चाहते थे !
वह बोले " नहीं नहीं मैं नहीं देख सकता ! यह तो एक्सिडेंट का मामला है ! इसे थाने ले जाओ ! वहीँ कोई रास्ता बताएँगे !"
वह टूट सी गयी ! वह अपने को असहाय महसूस कर रही थी ! ममता उसके आँखों से धार की तरह उमड़ रही थी ! निगाहें किसी की मदद के लिए इधर उधर तेज़ी से घूम रही थी ! मगर सभ्य समाज में उस गरीब का कोई मददगार कोई न निकला !फिर वह कहाई , " साहब एक बार देख लो , हो सकता है यह बच जाये ! थाने जाते जाते यह रस्ते में ही मर जायेगा !
लेकिन डॉक्टर साहब तस से मस नहीं हुए !वह अपने मरीजो में व्यस्त थे !वह ऐसे अनजान थे मनो कुछ हुआ ही न हो !
धीरे धीरे सब मरीज जा चुके थे !
अस्पताल बंद करने का समय हो गया ! डॉक्टर साहब अपना सामान लिए और उठ गए !
गंगा ने अपने बच्चे को उनके पैरों पर रख कर बोली " साहब इसे बच लीजिये ! इस मासूम को एक बार देख लो ! देखो यह अब हिचकियाँ भी लेने लगा ! भगवान् तुम्हे जस देगा ! भगवान् के लिए बच लो ! "
डॉक्टर साहब अपने पैरो को छुडा आगे निकल गए ! उनका कदम तेज़ी से बाहर को निकला ! जब तक गंगा जाती, वह वह जा चुके थे !
एकाएक बच्चा जोर जोर से सांसे लेने लगा ! जब तक गंगा उसे उठती , वह सब कुछ खो चुकी थी ! वह यह देख मूर्ति सी कड़ी थी ! उसे लगा जैसे उसके ममता के साथ अन्याय हुआ ! फिर उस बच्चे को गोद में लिया और फफक कर रो पड़ी !
डॉक्टर साहब घर आ चुके थे ! उन्होंने अपना सामान रखते हुए अपने नौकर से कहा " रामू नास्ता लगाओ , मैं अभी फ्रेश हो कर आ रह हूँ ! "
रामू " साहब नास्ता लगा दिया "
डॉक्टर साहब अभी नास्ता उठाते तभी फ़ोन की घंटी बजी ' ट्रिन ट्रिन "
उन्होंने फ़ोन उठाया " नहीं ...............यह कैसे हो गया ! "
" साहब वह स्कूल से लौट रहा था तभी एक कार की चपेट में आ गया ! शुक्र मनाये एक औरत ने उसे बचा लिया ! शंकर बोला
" तो वह ......................"
नहीं ऐसा कुछ नहीं है ! वह बिलकुल सुरक्षित हैं ! धन्य है वह औरत जिसने अपनी जान पर खेल कर उन्हें बचाया !
कितनी महान औरत है जिसने मेरे चिराग को बुझाने से बचाया ! कौन है वह ? " डॉक्टर साहब पूछे
" साहब यह वही गंगा है जो उस दिन अपने बच्चे को लेकर आई थी ! उसने कितनी विनती की लेकिन आप ने उसकी एक न सुनी !
" क्या उसका बच्चा मर गया ?" डॉक्टर साहब ने पूछा
" हाँ साहब "शर्कर बोला
"ओह ! मुझसे यह क्या अनर्थ हो गया "डॉक्टर साहब के मुह से निकला
शंकर ने कहा " वह अपना बच्चा खो चुकी थी इसलिए दुसरे के बच्चे को कैसे खोते देख सकती है !आखिर वह एक माँ जो है "
" ओह भगवान् "
इतना कहते हुए फ़ोन रखा ! गाडी में बैठे और अस्पताल की ओर चल दिए !
अस्पताल पहुँचते ही सामने दृश्य देकर वह पसीज गए !
गंगा पलंग पर लेती हुयी थी ! उसके सर व हाथों पर पट्टी बंधी थी !ओक्सिजन नली के बिच वह ज़िन्दगी और मौत के लिए लड़ रही थी ! उसे देख कर वह पसीज गए ! उसके पास गए ! उसके पैरों पर गिर पड़े ! उनके आँखों से पस्छाताप के आंसू झलक रहे थे ! उन्होंने कहा " बहन , मुझे माफ़ कर दो ! मैंने अपने कर्त्तव्य से छल किया है तुम्हारी गरीबी का मजाक उदय ! एक माँ का दिल तोडा ! मैं कैसे ..................................?"
उनके अंहो से आंसू की धार फूट पड़ी ! उनमे से एक बूँद गंगा के पैरो पर पड़ी !
उसने अपनी पलके खोली ! डॉक्टर साहब की ओर देखा ! उसने अपनी आँखों से ही सब जवाब दे दिया !
डॉक्टर साहब फिर बोले " मुझे माफ़ कर दो गंगा बहन ! मैं आज तक अपने फर्ज को नहीं समझ सका ! आज मुझे अपना फ़र्ज़ समझ में आया है ! पैसा ही सब कुछ नहीं होता है ! मानवता से बड़ी कोई चीज नहीं है !
तभी गंगा के ओठ कुछ ऊपर उठे , मानो वह कुछ कहना चाहती थी ! वह बोली " यह तो मेरा , एक माँ का कर्त्तव्य था ! मैं कौन हूँ माफ़ करने वाली ! यह कहते हुए उसके ओठ खामोश हो गए ........................हमेशा ...........हमेशा के लिए !
लेखक -आलोक कुमार श्रीवास्तव ( आलोक श्री )
No comments:
Post a Comment