कायस्थों की उत्पत्ति की पौराणिक कहानी
ब्रम्हा जी ने जब सृष्टि की रचना की तो उनके सिर , भुजाओं , जंघा तथा पैर के तलवों से उत्पन्न चार वर्ण बने। ब्रम्हा जी ने धर्मराज को कार्य सौंपा की तीनों लोकों में जितने भी जीव हैं उनके जन्म-मृत्यु, पाप-पुण्य, मोक्ष आदि का पूरा लेखा जोखा रखो। धर्मराज कुछ समय के बाद परेशान होकर ब्रम्हा के पास गए और बोले- " प्रभु, चौरासी लाख योनियों के जीवों के पाप पुण्य के लेखा-जोखा मुझसे अकेले नहीं होता, मेरी समस्या का समाधान कीजिये। उनकी बात सुन ब्रम्हा जी चिंता में पड़ गए। यम की इस अवस्था को देख, ब्रम्हा जी की काया से एक पुरुष कलम-दवात लेकर उनके समक्ष प्रकट हुआ। ब्रह्मा जी ने कहा की "वत्स तुम अब तक मेरी काया(चित्र ) में छुपे (गुप्त ) थे अतः तुम्हारा नाम चित्रगुप्त है" । काया से प्रकट होने के कारण उन्हें कायस्थ कहा गया। मनु स्मृति के अनुसार ब्रम्हा जी ने चित्रगुप्त महाराज को धर्मराज के साथ यमलोक में पाप-पुण्य कर्मों के अनुसार मोक्ष आदि के निर्धारण का कार्य सौंपा। इसीलिए कायस्थ लोग पारंपरिक तौर पर लेखांकन [ अकाऊंटिंग ], तथा साहित्यिक गतिविधियों से ज्यादा जुड़े हुए होते हैं। कलम के धनी कायस्थ लोग दिवाली के बाद द्वितीया के दिन चित्र गुप्त जी का जन्मदिन मानते है जिसमे कलम-दवात की पूजा करते हैं। बाकी हिन्दू समाज के लोग उस दिन भाई दूज मानते है क्योकि यमराज चित्रगुप्त जी को अपना काम सौंप कर अपनी बहन यमुना से मिलने गए थे।
पद्म पुराण तथा भविष्य पुराण के अनुसार , चित्रगुप्त महाराज की दो पत्नियों से बारह संतानें हुई । पहली पत्नी शोभावती से भटनागर, माथुर, सक्सेना , श्रीवास्तव तथा दूसरी पत्नी माता नंदिनी से अम्बष्ट , अष्ठाना ,निगम , वाल्मीकि, गौड़, कर्ण , कुलश्रेष्ठ , एवं सुरजद्वाज नामक आठ संतानें पैदा हुईं।
कायस्थों की बारह उपजातियां जब भारत के विभिन्न प्रान्तों में फैलने लगे , तो उन्होंने कुछ स्थानीय नाम अपना लिए। जैसे बिहार के कर्ण कायस्थ, आसाम के बरुआ, उड़ीसा के पटनायक और सैकिया , पश्चिम बंगाल के बोस , बासु, मित्रा , घोष, सेन, सान्याल तथा महाराष्ट्र में प्रभु। कुछ लोग लाल, प्रसाद, दयाल तथा नारायण भी लिखने लगे। इस प्रकार अनेक उपनाम बन गए।
इसी श्रंखला में प्रतिदिन कायस्थ समाज के एक चर्चित व्यक्तित्व की चर्चा की जाएगी। पाठकों के विचार एवं सुझाव सादर आमंत्रित हैं।
Mona ek uttam prayaas hai niymit rakhiye.
ReplyDeletedhanyawad Satyam ji
ReplyDeleteVery very impressive to know such excellant history ,please add daily some thing more . i think that all kayasth soon be habituated to see and read and enchant this blog as Gayatri MANTRA.
ReplyDeleteek sarahniy karya !! Mona ji aap ne kafi achchhi jaankari di hai.
ReplyDeleteBrilliant job
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ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली पढ़कर।
ReplyDeleteमैं मनीषा श्रीवास्तव (लोकगायिका) पटना, बिहार से हूं।
मैं भगवान चित्रगुप्त महाराज की जीवनी को संगीत का रूप देबे हेतु एक प्रोजेक्ट कर रही हु जिसका नाम है " कथा चित्रगुप्त महाराज की"
यह एक 30 मिन्ट्स का गीत होगा जिसमें भगवान चित्रगुप्त जी के उत्पति से लेकर कलम- दवात की पूजा के महत्व के साथ-साथ उनके महिमा और चमत्कार का वर्णन होगा।
Aap ko bahut bahut badhaai ho aap kamyab ho
DeleteThanks for knowledge
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