स्वामी विवेकानंद
युग आएंगे और युग चले जायेंगे किन्तु युगों की शूलावाली पर चल कर जो चरण आगे निकल गए है उनकी छाप अमिट है. उनके पद-चिन्हों पर चल कर हम भी अपने जीवन को गौरवशाली बना सकते है . ऐसे ही एक महापुरुष हैं स्वामी विवेकानंद जी. कायस्थ समाज को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत-वर्ष को उन पर गर्व है. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था. माता पिता ने उनका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त रखा था..उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त ,कलकत्ता उच्च न्यायालय के प्रतिनिधि थे. उनकी माता शिवभक्त थीं.
1881 में रामकृष्ण परमहंस जी को उन्होंने अपना गुरु बनाया. 1886 में रामकृष्ण की मृत्यु तक विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंस के साथ रहे. रामकृष्ण परमहंस जी ने नरेन्द्र को अशांत,व्याकुल और अधीर व्यक्ति से एक शांत और आनंद मूर्ति में बदल दिया, जिसे ईश्वर के सत्य रूप का ज्ञान हो. 1886 में रामकृष्ण की मृत्यु हो गई.
1888 से 1892 तक स्वामी विवेकानंद भारत के अलग-अलग भागों में घूमते रहे और 31 मई 1893 में शिकागो के लिए रवाना हो गए. 11 सितम्बर को शिकागो के कला केंद्र में धर्म संसद प्रारंभ हुई. पाश्चात्य देशो में प्रायः भाषण की शुरुआत "Ladies and Gentlemen" से की जाती है किन्तु जब विवेकानंद की बोलने की बारी आई तो उन्होंने माँ सरस्वती का स्मरण करते हुए अपना भाषण शुरू किया. उन्होंने भाषण की शुरुआत ‘Brothers and Sisters of America...’ के संबोधन शुरू की. इसका ऐसा असर हुआ कि 2 मिनट तक 7 हजार लोग उनके लिए तालियाँ बजाते रहे.पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया था.
विवेकानंद के विवेकशील भाषण ने ही धर्म संसद को हिला कर रख दिया. चारों तरफ विवेकानंद की प्रशंसा होने लगी. अमेरिकी अख़बारों ने विवेकानंद को “धर्म संसद” की सबसे बड़ी हस्ती के रूप में सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति बताया. उन्होंने संसद में कई बार हिन्दू धर्म और बौध मत पर व्याख्यान दिया.27 सितम्बर 1893 को संसद समाप्त हो गई. इसके बाद वे दो वर्षों तक पूर्वी और मध्य अमेरिका, बोस्टन, शिकागो, न्यूयार्क, आदि जगहों पर उपदेश देते रहे. 1895 और 1896 में उन्होंने अमेरिका और इंग्लैंड में उपदेश दिए.
1897 में वे भारत वापस आ गए और उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. ये उनकी शिक्षा, संस्कृति, चिकित्सा और राहत कार्य द्वारा धार्मिक सामाजिक आन्दोलन की शुरुआत थी. उसके बाद उन्होंने लोगों के उद्धार के लिए अनेक कार्य किए.उनके अनुसार हर आत्मा पवित्र है. हमारा लक्ष्य बाहरी और भीतरी रूप से इस आत्मा कि पवित्रता को बनाये रखना है.विवेकानंद के अनुसार, सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा जो उन्होंने अपने गुरु से ग्रहण कि हर व्यक्ति भगवन का रूप है, किसी गरीब और जरुरतमंद की सेवा भगवन की सेवा के समान है.
स्वामी विवेकानंद लगातार काम करने के चलते बीमार होते जा रहे थे. 04 जुलाई 1902 के दिन स्वामी विवेकानंद चिर समाधी में लीन हो गए. इस विश्व को प्रकाश देकर अपना शरीर छोड़ देने के बाद वे स्थायी प्रकाशपुंज बन गए जिससे पूरी दुनिया हमेशा प्रकाशित होती रहेगी.
दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग उनसे प्रभावित हुए और आज भी उनसे प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं. सी राजगोपालाचारी के अनुसार “स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा की”. सुभाष चन्द्र बोस के कहा “विवेकानंद आधुनिक भारत के निर्माता हैं”. महात्मा गाँधी मानते थे कि विवेकानंद ने उनके देशप्रेम को हजार गुना कर दिया.
आज हम अन्ना हजारे को अपना मसीहा मानते है. स्वयं अन्ना हज़ारे जी ने अपने साक्षात्कार में खुलासा किया कि उनके जीवन के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद जी है. उन्होंने बताया कि विवेकानंद जी के आदर्शो पर चल कर ही उन्होंने समाज और देश के प्रति अपना जीवन समर्पित किया है. इस प्रकार हम देख सकते है कि विवेकानंद जी के विचार भारत के लिए वरदान स्वरुप है जिन पर चल कर एक साधारण मनुष्य भी महान कार्य कर सकता है. यदि एक व्यक्ति विवेकानंद जी के विचार अपना कर इतना सब कुछ कर सकता है तो जरा सोचिये कि यदि समाज के सभी लोग विवेकानंद जी के आदर्शो को अपने जीवन में उतर ले तो इस समाज, देश और संसार कि काया पलट हो जाये.
स्वामी विवेकानंद के योगदान के लिए उन्हें युगों-युगों तक याद किया जायेगा.
विवेकानंद जी के आदर्शो का सभी अपने जीवन में पालन करें तो समाज की सारी समस्याएँ दूर हो जाये
ReplyDeleteye sabhi ko padhna chahiye
ReplyDeleteATI UTTAM PRAYAS
ReplyDeleteVERY INFLUENCING AND COMMENDABLE KNOWLEDGE ABOUT SWAMI JEE. IT IS VERY FANTASTIC TO FOLLOW THIS BLOG ,PLEASE KEEP ON ADDING DAILY SOME THING MORE.
ReplyDeleteMy mentor, My guru........
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