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Tuesday, October 18, 2011

श्यामजी कृष्ण वर्मा

श्यामजी कृष्ण वर्मा

क्रांतिकारी गतिविधियों के माध्यम से भारत की आजादी के संकल्प को गतिशील करने वाले एवं कई क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत थे। वे पहले भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम.ए. और बैरिस्टर की उपाधियां मिलीं थीं। पुणे में दिए गए उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर बना दिया था। उन्ह...ोने लन्दन में इण्डिया हाउस की स्थापना की जो इंगलैण्ड जाकर पढ़ने वालों के परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श का केन्द्र था।
श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म गुजरात के मांडवी गांव में हुआ था। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1888 में अजमेर में वकालत के दौरान स्वराज के लिए काम करना शुरू कर दिया था। मध्यप्रदेश में रतलाम और गुजरात में जूनागढ़ में दीवान रहकर उन्होंने जनहित के काम किए। मात्र बीस वर्ष की आयु से ही वे क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे। वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रेरित थे। 1918 के बर्लिन और इंग्लैंड में हुए विद्या सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
1897 में वे पुनः इंग्लैंड गए। 1905 में लॉर्ड कर्जन की ज्यादतियों के विरुद्ध संघर्षरत रहे। इसी वर्ष इंग्लैंड से मासिक "द इंडियन सोशिओलॉजिस्ट" प्रकाशित किया, जिसका प्रकाशन बाद में जिनेवा में भी किया गया। इंग्लैंड में रहकर उन्होंने इंडिया हाउस की स्थापना की। भारत लौटने के बाद 1905 में उन्होंने क्रांतिकारी छात्रों को लेकर इंडियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की।
उस वक्त यह संस्था क्रांतिकारी छात्रों के जमावड़े के लिए प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई। क्रांतिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा उनके शिष्यों में से थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। वीर सावरकर ने उनके मार्गदर्शन में लेखन कार्य किया था। 31 मार्च, 1933 को जेनेवा के अस्पताल में वे सदा के लिए चिरनिद्रा में सो गए।
 
 द्वारा- श्री प्रवीण श्रीवास्तव

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