Jai Chitra Gupt JI

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Global Kayasth Family -GKF

Saturday, October 22, 2011

चंदेलों के साथ इलाहाबाद आए थे कायस्थ

चंदेलों के साथ इलाहाबाद आए थे कायस्थ
कायस्थ शब्द का नाम आते ही हाथ में कलम लिए एक ऐसे समाज की छवि सामने आती है, जिसकी मेधा से समाज हमेशा दिशा पाता रहा है। गंगा-यमुना संस्कृति में ज्ञान की देवी सरस्वती के समागम से प्रयाग नगरी को धर्म और कर्म दोनों ही क्षेत्रों में खास दर्जा प्राप्त है। राजनीति का क्षेत्र हो या ब्यूरोक्रेट्स पूरे देश की नजर इस ओर होती है। इलाहाबाद को इस शीर्ष पर बैठाने में कलम के इन पुजारियों तथा ब्रह्मा और सरस्वती के मानस पुत्र चित्रगुप्त के वंशज कायस्थों की महती भूमिका रही है। मुंशी काली प्रसाद कुलभास्कर, लाल बहादुर शास्त्री, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा, अमिताभ बच्चन, न्यायमूर्ति वीएन खरे समेत अनेक महान विभूतियों  ने न केवल देश बल्कि पूरे विश्व को दिशा दिखाई। 28 अक्टूबर को यह समाज परंपरागत रूप से ईष्ट देव भगवान चित्रगुप्त की विधि-विधान से पूजा करेगा।
लांकि अपनी अधिक संख्या के कारण यहां की संस्कृति और राजनीति में प्रभावी दखल रखने वाले कायस्थों का संगम नगरी में कितना पुराना इतिहास है इसका कोई प्रमाणित इतिहास नहीं है। कायस्थ पाठशाला ट्रस्ट की स्थापना के बाद से ही इनका क्रमबद्ध लिखित इतिहास मिलता है लेकिन पुराने शिला लेखों से स्पष्ट है कि कायस्थ यहां के मूल निवासी नहीं हैं। अलग-अलग काल में राजा महाराजाओं के साथ वे यहां आए यहीं के होकर रह गए। अब तक मिले सबसे पुराने ऐतिहासिक प्रमाणों में कोरांव के मसमूद गांव में मिला ‘चंदेल लेख’ है। इसमें चंदेलों के साथ आए एक अफसर ‘श्रीवास्तव्य (श्रीवास्तव)’ का उल्लेख है। यह लेख 11वीं, 12वीं शताब्दी का है। जारी में भी इसी काल का ‘गढ़वाल लेख’ मिला है, जिसमें श्रीवास्तव का उल्लेख है। इविवि के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रो. ओपी श्रीवास्तव ने बताया कि मथुरा में कुषाण काल से ही कायस्थों का वर्णन है लेकिन इलाहाबाद में सबसे पुराना प्रमाण चंदेलों के समय से ही मिलता है। हालांकि मुगलकाल में इलाहाबाद में कायस्थों का कई जगह उल्लेख मिलता है। मंत्री समेत प्रमुख पदों पर कायस्थ आसीन रहे हैं। मध्य एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रो. सुशील श्रीवास्तव का कहना है कि पहली शताब्दी में पटना में कायस्थों का कई जगहों पर उल्लेख मिलता है। हालांकि इसका कोई प्रणाम नहीं है लेकिन उस काल में भी उनके यहां होने की बात कही जाती रही है।
वर्तमान में कायस्थ पाठशाला कायस्थों की नुमाइंदी करने वाली सबसे बड़ी संस्था है, जिसके सदस्य पूरे विश्व में हैं। प्रवक्ता नयन श्रीवास्तव का कहना है कि पदाधिकारियों की त्याग और समर्पण की गौरवमयी परंपरा रही है। इनका निर्वाचन लोकतांत्रिक तरीके से मतदान के जरिए से होता है, जिसमें दूर देश के सदस्य भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। जौनपुर में जन्मे मुंशी काली प्रसाद कुलभास्कर ने 1873 में इसकी स्थापना की थी। वर्तमान में वरिष्ठ अधिवक्ता टीपी सिंह अध्यक्ष तथा कुमार नारायन महामंत्री हैं।

शिक्षा क्षेत्र में है महत्वपूर्ण स्थान
कलम आज भी कायस्थों की जीविका मुख्य साधन है। या यूं कहें की शिक्षा ग्रहण तथा उसके माध्यम से रोजी की तलाश, यही उनका पुस्तैनी रोजगार है। कायस्थ पाठशाला ने भी प्रयाग को शिक्षित करने पर ज्यादा जोर दिया। ट्रस्ट के तत्वावधान में कुलभास्कर आश्रम पीजी और इंटर कालेज, सीएमपी डिग्री कालेज, काली प्रसाद प्रशिक्षण महाविद्यालय, केपीयूसी, केपी इंटर कालेज, केपी गर्ल्स इंटर कालेज, केपी कान्वेंट जूनियर स्कूल, मुंशी हरिनंदन प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन एवं जर्नलिज्म, श्रीमती सुशीला देवी इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइन समेत कई स्कूल कालेज संचालित हो रहे हैं। इनमें हजारों विद्यार्थी प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तथा व्यवसायिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कर रहे हैं। 

यह लेख अमर उजाला समाचार पत्र के इलाहबाद संस्करण में छपा है 
सौजन्य : श्री विनीत श्रीवास्तव जी  

3 comments:

  1. क्षमा करना एक प्रश्न दिमाग में उत्पन्न हो रहा है ।
    कि भगवान श्री चित्रगुप्त जी से कायस्थ है या कायस्थ से श्री चित्रगुप्त ?
    प्राय: ये सुनने को मिलता है की भगवान श्री चित्रगुप्त जी से कायस्थों की उत्पत्ति हुई है ।
    पर कौन से वेद या पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है
    जिससे हम सभी दुसरे समाज में पुरे हक के साथ प्रमाणित कर सके।
    कोई कहता है कायस्थ क्षत्रिय है कोई कहता है ब्राह्मण है कोई कहता है वैश्य है और तो और कोई शूद्र तक कह देता है ।
    आखिर ईस प्रकार की अलग अलग लोगो की कायस्थ के प्रति धारणायें कैसे हुई।
    अगर कोई प्राचीन कायस्थ ग्रंथ हो तो बताने की कृपा करे ।

    जय श्री चित्रगुप्त जी

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    1. सृष्टी की रचना के बाद ब्रह्मा जी ने न्याय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए हज़ारो साल कठिन तपस्या की तब उन्ही की काया से एक कलम दवात धारण किये एक तेजस्वी देव प्रकट हुए जिन्हें स्वंय ब्रह्मा जी ने अपना मानस पुत्र मानते हुए अपनी काया से निर्मित होने पर "कायस्थ' की पहचान दी और उनका चित्त अपने मे धारण रखने पर "चित्रगुप्त" नाम दिया।

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