Jai Chitra Gupt JI

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Global Kayasth Family -GKF

Monday, November 19, 2012

कायस्थ समाज ने की चित्रगुप्त की पूजा



Updated on: Fri, 16 Nov 2012 08:38 AM (IST)

रांची : राजधानी में कई जगहों पर कायस्थ समाज ने चित्रगुप्त की पूजा अर्चना की। श्रद्धासुमन अर्पित किए। अशोक नगर में श्री चित्रगुप्ता पूजा समिति ने दिन के 11 बजे से कार्यक्रम शुरू किया। पूजा-अर्चना एवं हवन किया गया। इसके बाद महाआरती में सभी लोगों ने भाग लिया। आयोजन में सांसद सुबोधकांत सहाय, जस्टिस प्रशांत कुमार, आईजी आलोक राज, आईजी आरके मल्लिक एवं समिति के अध्यक्ष मुकेश कुमार, बरखा सिन्हा, शंकर वर्मा, संजय शरण, प्रवीण नंदन, राकेश रंजन, अमरेश कुमार आदि ने भाग लिया। संध्या सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके बाद भाई भोज में एडीजी अशोक सिन्हा, एडीजीपी नीरज सिन्हा, जस्टिस बीके सिन्हा, मुन्ना भरथुहार, रतनेश कुमार, शैलेश सिन्हा, दीपक प्रकाश, राजीव रंजन प्रसाद, प्रणव कुमार, डा. अमर सहित सैकड़ों लोगों ने भाग लिया।
हेसल में भी पूजा का आयोजन किया गया। अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा, सुशील कुमार, शशि कुमार, आशुतोष कुमार, सत्यजीत कुमार, विद्याशंकर, राकेश कुमार आदि ने भाग लिया। संध्या छह बजे चित्रगुप्त की आरती उतारी गई। इसके बाद प्रीतिभोज में सैकड़ों लोग शामिल हुए।

साहस व स्वाभिमान उनका ओढ़ना-बिछौना था- लालबहादुर शास्त्री







लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरि। चींटी ले सक्कर चली, हाथी के सिर धूरि॥' यह दोहा हमारे देश भारत की महान विभूति लालबहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व पर चरितार्थ होता है। 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय के एक निर्धन परिवार में शास्त्रीजी का जन्म हुआ था। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद शिक्षक थे। जब लालबहादुर शास्त्री डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। 

माँ रामदुलारीजी ने कठिनाइयों से किंतु स्वाभिमान के साथ शास्त्रीजी और उनकी बहनों का लालन-पालन किया। स्वाभिमान और साहस के गुण शास्त्रीजी को अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे। वास्तविकता तो यह है कि साहस और स्वाभिमान लालबहादुर शास्त्री का ओढ़ना-बिछौना था। 

शास्त्रीजी को अपने अध्ययन में रुकावट बर्दाश्त नहीं थी। आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने 1926 में काशी विद्यापीठ से 'शास्त्री' की उपाधि प्राप्त की। इस उपाधि के कारण ही कायस्थ परिवार में जन्मे लालबहादुर को 'शास्त्री' कहा जाने लगा। शास्त्रीजी महात्मा गाँधी से प्रभावित थे। उनके नेतृत्व में संचालित स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण शास्त्रीजी को कई बार जेल की सजाएँ भोगनी पड़ीं, परंतु कारावास की यातनाओं से शास्त्रीजी विचलित नहीं हुए। 

शास्त्रीजी दरअसल महान कर्मयोगी थे। नेहरूजी के प्रधानमंत्रित्वकाल में जब वे रेलमंत्री थे, तब एक रेल दुर्घटना होने पर उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से तुरंत त्यागपत्र दे दिया था। यह शास्त्रीजी की नैतिकता और संवेदनशीलता का सबूत था। 
आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने 1926 में काशी विद्यापीठ से 'शास्त्री' की उपाधि प्राप्त की। इस उपाधि के कारण ही कायस्थ परिवार में जन्मे लालबहादुर को 'शास्त्री' कहा जाने लगा। शास्त्रीजी महात्मा गाँधी से प्रभावित थे।


नेहरूजी के प्रभावशाली व्यक्तित्व के मोहपाश से बँधी भारतीय जनता, जो उनके निधन से स्तब्ध रह गई थी, लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने से वही जनता आश्चर्यचकित रह गई। राजनीति के संतुलित समीक्षक भी तब अपनी टिप्पणियों में संतुलन नहीं रख सके थे। कतिपय समीक्षकों को लगा था कि प्रधानमंत्री के पद पर शास्त्रीजी का चयन स्वभाव से सुसंस्कारी किंतु कमजोर आदमी का चयन है। शीघ्र ही समीक्षकों की शंकाएँ निर्मूल साबित हुईं। अपनी स्वभाविक सहिष्णुता और सराहनीय सूझबूझ से समस्याओं को सुलझाने की जो शैली शास्त्रीजी ने अपनाई, उससेसबको पता चल गया कि जिस आदमी के कंधों पर भारत का भार रखा गया है, वह अडिग, आत्मविश्वास और हिमालयी व्यक्तित्व का स्वामी है। 

शास्त्रीजी प्राणपण से राष्ट्रोत्थान के लिए प्रयासशील रहे। वे राष्ट्रीय प्रगति के पर्वतारोही थे, इसलिए राष्ट्र को उन्होंने उपलब्धियों के उत्तुंग शिखर पर पहुँचाया। उनकी प्रशासन पर पैनी पकड़ थी। राष्ट्रीय समस्याओं के समुद्र में आत्मविश्वासपूर्वक अवगाहन करके उन्होंने समाधान के रत्न खोजे। उदाहरणार्थ- भाषावाद की भभकती भट्टी में भारत की दक्षिण और उत्तर भुजाएँ झुलस गईं तो शास्त्रीजी ने राष्ट्रभाषा विधेयक के विटामिन से दोनों की प्रभावशाली चिकित्सा की। असम के भाषाई दंगों के दावानल के लिए 'शास्त्री फार्मूला' अग्नि-शामक सिद्ध हुआ। पंजाब में अकालियों के आंदोलन के विस्फोट को रोकने में शास्त्रीजी की भूमिका महत्वपूर्ण रही। 

शास्त्रीजी ने अपने प्रधानमंत्रित्व के दौर में देश को परावलंबन की पगडंडी से हटाकर स्वावलंबन की सड़क पर गतिशील किया। उन्होंने 'जय जवान, जय किसान' के नारे के साथ हर क्षेत्र में स्वावलंबी, स्वाभिमानी और स्वयंपूर्ण भारत के सपने को साकार करने के लिए उसे योजना के ढाँचे और युक्ति के साँचे में ढाला। 

सन्‌ 1965 में भारत-पाक युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर विजय, शास्त्रीजी के कार्यकाल में राष्ट्र की उच्चतम उपलब्धि थी। वे अहिंसा के पुजारी थे, किंतु राष्ट्र के सम्मान की कीमत पर नहीं। उनका आदेश होते ही शक्ति से श्रृंगारित एवं आत्मबल से भरपूर भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को परास्त करके विजयश्री का वरण कर लिया था। 

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लालबहादुर शास्त्री आपदाओं में आकुल और विपत्तियों में व्याकुल नहीं हुए। उस समय जबकि सारा देश ही अनिश्चय के अंधकार में अचेत था, वे चेतना के चिराग की तरह रोशन हुए। उनका व्यक्तित्व तानाशाही के ताड़-तरु की श्रेणी में नहीं, प्रजातंत्र की तुलसी के बिरवे के वर्ग में आता है। भारतीय संस्कृति में तुलसी का बिरवा उल्लेखनीय तो है ही, सम्माननीय भी है।

शोभायात्रा में प्रदर्शित हुए कायस्थ महापुरुषों चित्र



Updated on: Sun, 18 Nov 2012 11:24 PM (IST)

जागरण संवाददाता, आगरा: चित्रगुप्त महाराज के जयघोषों के साथ शोभायात्रा निकाली गयी । जिसमें एकता और प्रेम का संदेश दिया गया। एक दर्जन से अधिक झांकियां इसमें शामिल थीं।
ऑल इंडिया कायस्थ फ्रंट की ओर से शोभायात्रा सुभाष नगर, अलबतिया से निकाली गयी। शुभारंभ एमएलसी रामसकल गुर्जर और पूर्व मेयर अंजुला सिंह माहौर ने किया। शोभायात्रा में गणपति की झांकी के बाद सरस्वती, कलम दवात, पर्यावरण के अलावा कायस्थ समाज के सुभाषचंद बोस, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ.राजेंद्र प्रसाद, स्वामी विवेकानंद की झांकियां विशेष रहीं। अंत में चित्रगुप्त महाराज के झांकी थी। जिसके आगे समाज के प्रमुख जन चल रहे थे।
विभिन्न मार्गो से होती हुई यह शोभायात्रा तहसील रोड स्थित कुलश्रेष्ठ भवन पहुंची। जहां श्रीवास्तव आर्केस्टा ग्रुप के कलाकारों ने भजन प्रस्तुत किये। इससे पूर्व शोभायात्रा के संयोजक डॉ.राहुल राज, सह संयोजक डॉ.अतुल कुलश्रेष्ठ का साफा पहना कर अभिनंदन किया।
कई नगरों से आये चित्रगुप्त अनुयायी
शोभायात्रा में शामिल होने के लिए विभिन्न नगरों से भी कायस्थ जन आये। जिनमें मनोज सक्सेना (अलीगढ़), अशोक श्रीवास्तव (नोएडा), राहुल सक्सेना (लखनऊ), आदर्श सक्सेना (रामपुर), अशोक श्रीवास्तव आदि प्रमुख थे।
सद्भावना का संदेश
शोभायात्रा के स्वागत के लिए विभिन्न चौराहों पर युवक-युवती मौजूद थे, जिन्होंने चित्रगुप्त महाराज के चित्र की आरती उतारी। शोभायात्रा में शामिल अतिथियों का फूल माला पहना कर स्वागत किया। स्वागतकर्ताओं ने सर्वधर्म सद्भावना का संदेश भी दिया। भोगीपुरा चौराहा पर मुस्लिम समाज, रूई की मंडी चौराहा पर सिंधी समाज, काली मंदिर पर गोस्वामी समाज ने शोभायात्रा का स्वागत किया।


कायस्थ समाज ने किया भगवान चित्रगुप्त का पूजन



Updated on: Thu, 15 Nov 2012 08:10 PM (IST)


आजमगढ़ : कायस्थ समाज के लिए प्रमुख पर्व भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा गुरुवार को हर घर में श्रद्धा के साथ की गई। घरों में पूजा के बाद लोग हीरापट्टी स्थित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर पहुंचे और वहां हवन-पूजन करने के साथ भगवान का दर्शन कर आरती की। इस दौरान बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की।
इस पूजा पर्व को लेकर कायस्थ परिवारों में सुबह से ही उत्साह का माहौल नजर आया। सुबह घरों में भगवान चित्रगुप्त का चित्र रखकर तथा उसके सामने धूप-दीप जलाकर जहां पूजा की गई वहीं चित्र के समक्ष घर के उन सदस्य संख्या के अनुसार जो पढ़ने-लिखने वाले हैं के नाम से कलम और दवात रखकर पूजा की गई। कलम और दवात को स्नान कराने के बाद रक्षा और रोली लगाया गया। पूजा के बाद सदस्यों को प्रसाद स्वरूप कलम दिया गया और सदस्यों से माथे लगाकर उसे जेब में रखा।
दूसरी ओर घरों में पूजा के बाद कायस्थ समाज के लोग हीरापट्टी स्थित श्री चित्रगुप्त मंदिर पहुंचे और वहां हवन-पूजन के साथ भगवान का दर्शन किया। दोपहर बाद प्रसाद वितरण हुआ और शाम को भंडारे का आयोजन किया गया। इस दौरान बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमति इंदिरा जायसवाल और सभासद अनूप श्रीवास्तव ने भी पहुंचकर श्री चित्रगुप्त भगवान का पूजन-अर्चन किया।

कायस्थ समाज ने दी ठाकरे को श्रद्धांजलि



Updated on: Mon, 19 Nov 2012 12:37 AM (IST)

जमशेदपुर : अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने बाला साहेब ठाकरे को श्रद्धांजलि दी। केंद्रीय समिति के सदस्य एके श्रीवास्तव ने कहा कि ठाकरे का जन्म मराठी कायस्थ परिवार में हुआ था लेकिन वे प्रत्येक जाति-धर्म के चहेते थे और सबके लिए लड़े। कायस्थ या अन्य जाति में जन्म लेने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को उनसे सीख लेनी चाहिए। आज उनकी अंतिम यात्रा में जितने लोग उमड़े, महाराष्ट्र के इतिहास में कभी नहीं हुआ। कायस्थ महासभा उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करती है।

Friday, November 16, 2012

यम द्वितीय पर हुआ भगवान चित्रगुप्त का पूजन अर्चन



मीरजापुर : यम द्वितीया पर गुरुवार को कायस्थ समाज के लोगों ने भगवान चित्रगुप्त का पूजन अर्चन किया। अनगढ़ रोड स्थित अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के जिला कार्यालय पर गुरुवार को यम द्वितीया पर्व पर श्री चित्रगुप्त महाराज का पूजन अर्चन कर कलम दवात की पूजा कर काम का कामकाज शुरू किया। तत्पश्चात महासभा के नव निर्वाचित जिलाध्यक्ष संजय श्रीवास्तव द्वारा कार्यालय का विधिवत उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर संगठन के प्रांतीय उपाध्यक्ष अरविंद श्रीवास्तव ने कहा कि महासभा कायस्थों के हक व सम्मान के लिए वर्षो से संघर्षरत हैं। कामना की कि श्री चित्रगुप्त भगवान की कृपा जनपद वासियों पर सदैव बनी रहे। इस अवसर पर संजय श्रीवास्तव, रत्‍‌नेश चंद्र श्रीवास्तव, मनीष श्रीवास्तव, दीपांकर श्रीवास्तव, अजित श्रीवास्तव, किरन श्रीवास्तव आदि थे। उधर बरियाघाट स्थित श्री चित्रगुप्त मंदिर पर भी भगवान श्री चित्रगुप्त का पूजन अर्चन कर कलम दवात की पूजा की गई। इस अवसर पर विभिन्न पदाधिकारी उपस्थित थे।

फैंसी ड्रेस में पुष्कर, रंगोली में अंजली अव्वल




मीरजापुर: बरियाघाट स्थित श्री चित्रगुप्त मंदिर में गुरुवार को तीन दिवसीय यम द्वितीया महोत्सव का समापन हुआ। इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी की गई।
इस दौरान आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया। इसमें प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त विजेता प्रतिभागियों में फैंसी ड्रेस में पुष्कर श्रीवास्तव, शताक्षी, कृतार्थ। रंगोली में अंजली श्रीवास्तव, श्रुति श्रीवास्तव व रच्म श्रीवास्तव। संगीत में गिटार पर सार्थक वर्मा व उत्कर्ष श्रीवास्तव की जोड़ी ने लोगों के मन के तारों को झंकृत किया। गौरी वर्मा व पाशवी श्रीवास्तव के नृत्य भी सराहे गए। चित्रांश गौरव सम्मान सीए रविशंकर श्रीवास्तव को प्रदान किया गया। काव्य लेखन के लिए स्व. राजेश वर्मा स्मृति पुरस्कार गोपाल कृष्ण सिन्हा शेष को स्व. राजेश वर्मा के भाई रूपेश वर्मा ने प्रदान किया। अपने संबोधन में केबीपीजी के पूर्व प्राचार्य विंध्याचल वर्मा ने कहा कि हम अपने ज्ञान का प्रकाश सभी ओर फैला सके तो यही हमारे समाज की सार्थकता होगी। संचालन व समापन अमित श्रीवास्तव ने किया। सभा के अध्यक्ष दिलीप कुमार श्रीवास्तव ने समाज को विश्वास दिलाया कि समाज की प्रगति के लिए सभा बराबर तत्पर रहेगी। इस अवसर पर वीरेंद्र श्रीवास्तव, कमला प्रसाद, दिलीप कुमार श्रीवास्तव, दिनेश कुमार श्रीवास्तव, कमलेश स्वरूप, अमरनाथ, रजत श्रीवास्तव, नरेंद्र श्रीवास्तव, हरिशंकर श्रीवास्तव आदि थे।
इसके पूर्व सायंकाल 5 बजे राष्ट्र के कल्याण हेतु मंदिर में यज्ञ का आयोजन हुआ। रात्रि भगवान चित्रगुप्त महाराज के मंदिर का श्रृंगार किया गया। दुर्गाजी श्रीवास्तव ने कथा का वाचन किया और वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की स्तुति।





जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।
कर्मेश जय धर्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो।
जय श्यामतम, चित्रेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

पुर्वज व भगवत अंश जय, कास्यथ कुल, अवतंश जय।
जय शक्ति, बुद्धि विशेष तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय विज्ञ क्षत्रिय धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।
जय शांति न्यायाधीश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय दीन अनुरागी हरी, चाहें दया दृष्टि तेरी।
कीजै कृपा करूणेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

तब नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भव, त्रयताप से।
हो दूर सर्व कलेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्य पद पद्येश तव, शरणागतम् शरणागतम्।

कलम-दवात के साथ भगवान



जाटी., लखीसराय : गुरुवार को जिले भर में कायस्थ समाज के लोगों ने भगवान चित्रगुप्त की पूजा-अर्चना श्रद्धा भक्ति भाव के साथ की तथा सुख-समृद्धि की कामना की। शहर के नया बाजार पचना रोड स्थित सिन्हा पॉली क्लिनिक परिसर में कायस्थ समाज की ओर से भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा स्थापित कर बड़ी संख्या में लोगों ने कलम-दवात की पूजा कर भगवान के समक्ष अपना लेखा-जोखा रखा। कायस्थ संघ के अध्यक्ष डा. प्रवीण कुमार सिन्हा, सचिव प्रदीप कुमार वर्मा की देखरेख में पंडित कमल नयन पांडेय ने विधि विधान के साथ भगवान चित्रगुप्त की पूजा करवाई। इस मौके पर ब्रजेश्वरी प्रसाद सिन्हा ने कहा कि भगवान चित्रगुप्त समस्त मानव जाति के पाप-पुण्यों का लेखा-जोखा रखने वाले कलम-दवात के देवता भी कहे जाते हैं। इस मौके पर कायस्थ समाज के नवल किशोर प्रसाद सिंहा, नरेश प्रसाद सिन्हा, अशोक कुमार सिंहा, बैंक कर्मी राजीव कुमार, संजीव सहाय, करण जी, मीडिया प्रभारी राकेश कुमार गुलशन, ललन कुमार मुन्ना सहित शहर के कई प्रबुद्धजन उपस्थित थे। पूजा अर्चना के बाद भगवान चित्रगुप्त की आरती हुई। उधर भैया दूज को लेकर बहनों ने अपने भाई की लंबी उम्र की कामना को लेकर पूजा की। सूर्यगढ़ा प्रतिनिधि के अनुसार सलेमपुर निवासी श्यामल प्रसाद सिन्हा, रामचंद्र प्रसाद सिन्हा, कटेहर निवासी असीम कुमार सिन्हा के यहां भगवान चित्रगुप्त की पूजा की गई। कायस्थ समुदाय के लोगों ने कलम बंद रखा। उधर भैया दूज का त्योहार उत्साह पूर्वक मनाया गया। बहन ने अपने भाई की सुख-समृद्धि की कामना के लिए गोबर से बनाए गए गोधन-गोधनी को ईट पर रखकर समाठ के कुटा। वहीं भाई को बजरी के साथ मिठाइयां खिलाई। पीरी बाजार प्रतिनिधि के अनुसार भाई की लंबी उम्र एवं सुख-समृद्धि के लिए बहनों द्वारा भैया दूज हर्षोल्लासपूर्ण वातावरण में मनाया गया। इस पूजा को लेकर बुधवार को कजरा, पीरी बाजार, उरैन में चहल-पहल रही। प्रीतम कुमारी सिन्हा एवं सानू प्रिया बताते हैं कि जितिया का पर्व से ही बजरी (केराव) को रखा जाता है। भैया दूज के दिन उस बजरी के साथ-साथ नारियल, सुपाड़ी, मिठाई एवं हाथों से बनाए जाने वाले रूई का माला पहनाकर भाई की लंबी उम्र की कामना की जाती है। चित्रगुप्त पूजा के अवसर पर मदनपुर ग्राम स्थित रतिकांत सिन्हा उर्फ टिंकू के आवास पर सामूहिक पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। शिव शंकर प्रसाद उर्फ कन्हैया, पंकज कुमार सिन्हा, आयुष कुमार सिन्हा, सेवानिवृत्त शिक्षक विश्वनाथ प्रसाद, सामाजिक कार्यकर्ता वीरेन्द्र कुमार सिन्हा, चिंटू कुमार सिन्हा, अधिवक्ता शशिकांत कुमार सिन्हा, आशीष कुमार सिन्हा, राजीव कुमार श्रीवास्तव, आदर्श कुमार सिन्हा, गुडडू सिन्हा, गोपी कुमार सिन्हा, ऋषिकेश कुमार सिन्हा, ब्रजेश कुमार सिंहा, सिमरन रानी, अमन कुमार सिंहा, नमन कुमार सिन्हा, मंजीत कुमार सिन्हा, सेवानिवृत्त डाकपाल श्री राणा प्रसाद आदि की देखरेख में पूजनोत्सव संपन्न हुआ।

उत्साह व आस्था के साथ हुई भगवान चित्रगुप्त की पूजा




-रंग-बिरंगे परिधानों में चित्रांश पहुंचे समारोह स्थल पर
-राहुल नगर में नौ फीट की मूर्ति
मुजफ्फरपुर, वसं : लेखनी, कटनी हस्त चित्रगुप्ताय नम:। भगवान चित्रगुप्त की स्तुति करते पूजा पर बैठे श्रद्धालु आस्था में डूब गए। अवसर रहा कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया गुरुवार को भगवान चित्रगुप्त के प्रकट होने की तिथि पर उनकी पूजा का। इस बार 19 स्थानों पर धूमधाम से पूजा का आयोजन हुआ।
भगवान चित्रगुप्त के मंदिर में शिलापट्ट पर कलम, दवात के साथ यह श्लोक भी अंकित है। पूजा स्थल पर जिला चित्रगुप्त एसोसिएशन का छपा हुआ हिसाब-किताब का ब्योरा भी। इसमें आय से अधिक खर्च का उल्लेख था। इसी तरह घरों में भी चित्रांशों ने अपने-अपने घरेलू खर्च का हिसाब रखते हुए भगवान चित्रगुप्त से सुख-समृद्धि की कामना की।
मंदिर में तीन घंटे से अधिक तक चली पूजा के क्रम में आचार्य सुनील कुमार मिश्र ने भगवान चित्रगुप्त के अवतरण और उनके महात्म्य की कथा सुनाई। कथा में जिक्र आया कि ब्रह्मा जी के सम्मुख भगवान चित्रगुप्त प्रकट हुए। इस पर उन्होंने कहा कि आप कौन हैं। उन्होंने कहा कि मैं आपका पुत्र हूं। तब ब्रह्मा जी ने कहा- तुम मेरी काया से प्रकट हुए हो इसलिए कायस्थ हो। उन्हें सृष्टि के संचालन में जीव के अच्छे-खराब कर्मो का लेखा-जोखा रखने की जिम्मेदारी दी गई। पूजा के बाद प्रसाद वितरण शुरू हुआ जो शाम को आरती होने तक चलता रहा।
छाता चौक स्थित चित्रगुप्त एसोसिएशन की पूजा में मुख्य यजमान अध्यक्ष राजकुमार व महासचिव डा. अजय नारायण सिन्हा रहे। इस अवसर पर उदय नारायण सिन्हा, विमल कुमार लाभ, आलोक कुमार, चिरंजीव कुमार अन्नू, सुनील कुमार सिन्हा, भूपेन्द्र कुमार अस्थाना समेत सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
समारोह में नगर विधायक सुरेश कुमार शर्मा व पूर्व विधायक विजेंद्र चौधरी भी पहुंचे। नयाटोला, शास्त्री नगर, लक्ष्मीनारायण नगर, मालीघाट, गोला बांध रोड, ब्रह्मापुरा में राहुल नगर चित्रगुप्त नगर, बैंककर्मियों का समूह के अलावा ग्रामीण क्षेत्र सुस्ता आदि में पूजा हुई।
ब्रह्मापुरा स्थित राहुल नगर का मुख्य आकर्षण भगवान चित्रगुप्त की नौ फीट लंबी मूर्ति रही। इस समारोह में पूजा समिति के सन्नी सिन्हा, अभिषेक कुमार, प्रमोद कुमार, अमित कुमार आदि ने हिस्सा लिया।
शास्त्री नगर पूजा समिति में सुबह पूजा के बाद शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। मुख्य यजमान सिद्धेश्वर प्रसाद रहे। समिति सचिव सतीश कुमार, एसएम कर्ण, लल्लन प्रसाद, नर्मदेश्वर प्रसाद, कुमुद प्रसाद, मोतीमोहन प्रसाद आदि ने पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की। शाम को भोला बाबू व अन्य गु्रप द्वारा गायन प्रस्तुत कर समां बांध दिया गया।
इसी तरह रामबाग चौड़ी में हनुमंदीश्वर महादेव मंदिर समिति के तत्वावधान में भव्य पूजा का आयोजन हुआ। पूजा में उत्पल, रोशन, मदन मोहन श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।

श्रद्धा के साथ पूजे गए भगवान चित्रगुप्त

बलिया : जनपद में गुरुवार को कायस्थ समाज के लोगों ने भगवान चित्रगुप्त की पूजा हर्षोल्लास से साथ की। इस दौरान समाज के लोगों ने कलम-दवात की पूजा कर भगवान चित्रगुप्त को नमन किया। गुरुवार को समाज के लोगों ने लेखन कार्य को बंद रखा और हवन-पूजन किया। इस क्रम में चित्रगुप्त मंदिर सभा के तत्वावधान में भृगु आश्रम स्थित मंदिर पर भगवान चित्रगुप्त का पूजन-अर्चन किया गया। विभिन्न रंगों के झालर व फूल मालाओं से सजाए गए मंदिर में समाज के लोगों ने हवन-पूजन के साथ ही चित्रगुप्त कथा का श्रवण भी किया। मंदिर में दूरदराज के क्षेत्रों से जुटे समाज के लोगों ने कुल देवता के प्रति आस्था व्यक्त किया। शाम को आयोजित देवी जागरण के रूप में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि झारखंड पुलिस के आईजी दीपक वर्मा ने दीप प्रच्जवलित कर किया। कार्यक्रम में प्रोफेसर अरविंद उपाध्याय के नेतृत्व में महुआ टीवी के कलाकारों ने गीत प्रस्तुत कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। देवी गीतों पर दर्शक झूमने पर मजबूर हो गए। कार्यक्रम में सभा के अध्यक्ष डा.अजय कुमार श्रीवास्तव, सचिव विनोद कुमार श्रीवास्तव, सुनील श्रीवास्तव, अरुण, बृजभूषण श्रीवास्तव, उप्र अखिल भारतीय चित्रांश सभा के महासचिव सुरेंद्र मेहता दाऊ जी आदि लोग मौजूद रहे।
गड़वार प्रतिनिधि के अनुसार कायस्थ परिवारों में चित्रगुप्त पूजन श्रद्धा पूर्वक मनाया गया। चित्रगुप्त महाराज के चित्र पर पूजन अर्चन के पश्चात हवन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुआ। प्रसाद स्वरूप मिष्ठान का वितरण किया गया। कायस्थों ने लेखनी नहीं चलाई। पूजन पंडित हरिशंकर उपाध्याय शास्त्री ने कराया।


चित्रगुप्त भगवान की पूजा से मिलता है स्वर्ग


आरा, एक प्रतिनिधि : शहर में चित्रगुप्त पूजा हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। स्थानीय बाबू बाजार स्थित चित्रगुप्त मंदिर में अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के बैनर तले पूजा का कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता महासभा के जिलाध्यक्ष प्रियरंजन प्रसाद श्रीवास्तव ने की। मंदिर के पुजारी कमलेश्वरी उपाध्याय ने वैदिक रीति-रिवाज से भगवान चित्रगुप्त भगवान की पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर श्री उपाध्याय ने कहा कि जो लोग भगवान चित्रगुप्त की पूजा-अर्चना करते हैं, वे सभी पापों से मुक्त होकर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग लोक में जाते हैं। वहीं मंदिर के प्रबंध कार्यकारिणी मंदिर के सदस्य एस. दीपक ने मंदिर बनवाने की घोषणा की। इस अवसर पर डा.के.बी.सहाय, उदय नारायण प्रसाद, लाल बाबू श्रीवास्तव, सत्येन्द्र स्नेही, के.बी. श्रीवास्तव, डा.के.एन. सिन्हा, डा. दिनेश प्रसाद सिन्हा, डी. राजन, डा.केशव प्रसाद, श्रीनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, डा. मृत्युंजय कुमार सिन्हा आदि उपस्थित थे। चित्रांश समिति के बैनर तले स्थानीय शीतल टोला स्थित नवीन विद्यालय में चित्रगुप्त पूजनोत्सव संपन्न हुआ। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए लोगों को सम्मानित किया गया। सम्मानित होनेवालों में डा.जीत शर्मा, डा. विजयालक्ष्मी शर्मा, डा. प्रकाश चन्द्र सिन्हा, डा. एम.एम. द्विवेदी, डा. आशुतोष कुमार, डा. मधुबाला सिन्हा(सभी चिकित्सा क्षेत्र), डा. मीरा श्रीवास्तव, रणजीत बहादुर माथुर(शिक्षा क्षेत्र), उदय नारायण प्रसाद, अनिल कुमार सिन्हा(विधि क्षेत्र), शमशाद 'प्रेम', देवराज ओझा(पत्रकारिता क्षेत्र), सच्चिदानन्द श्रीवास्तव, रमेश वर्मन(संगीत क्षेत्र), डी.एन.सिंह(समाजसेवा) और प्रथम महिला थानाध्यक्ष पूनम सिंह हैं। साथ ही गरीब चित्रांश परिवार के बीच सिलाई मशीन वितरित किया गया। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम व क्वीज प्रतियोगिता आयोजित की गयी। कार्यक्रम में समिति के अध्यक्ष सत्येन्द्र स्नेही ने समाज के गरीब परिवार को सहयोग करने की अपील की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा.के.बी.सहाय व डा. जी.पी श्रीवास्तव के अलावे डा. सुधीर, टी.एस. सिन्हा, डब्लू, पंकज कुमार, राकेश कुमार, विजय कुमार समेत अन्य लोग उपस्थित थे। वहीं
चित्रगुप्त परिवार के द्वारा आई.एम.ए हाल में चित्रगुप्त पूजा का आयोजन किया गया। इसमें आचार्य के रूप में आचार्य कृष्ण सागर मिश्र और यजमान के रूप में नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. प्रकाश चन्द्र सिन्हा थे। संध्या वेला में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। वहीं शुक्रवार को दोपहर में सहभोज के आयोजन की बात कही गयी। इस अवसर पर डा. अशोक कुमार सिन्हा, प्रो. संतोष कुमार सिन्हा, डा. के.एन. सिन्हा, डा.सतीश कुमार सिन्हा, डा. विनोद कुमार सिन्हा, डा.केशव प्रसाद, डा. रोहित प्रियदर्शी, मुरारी प्रसाद श्रीवास्तव, फूलेन्द्र प्रसाद, शिवशंकर प्रसाद, मनीष शंकर, राकेश कुमार सिन्हा समेत अन्य लोग उपस्थित थे।

विधि विधान से पूजे गए चित्रगुप्त



ज्ञानपुर (भदोही): नवयुवक चित्रगुप्त कायस्थ समाज द्वारा गुरुवार को भगवान चित्रगुप्त का विधि विधान से पूजन किया गया।
चित्रगुप्त मंदिर परिसर ज्ञानपुर में आयोजित पूजन कार्यक्रम में जुटे बड़ी संख्या में समाज की महिला पुरूष श्रद्धालुओं ने पूजन किया। इस मौके पर पूजा व्यवस्थापक सत्यप्रकाश श्रीवास्तव, दिनेश कुमार श्रीवास्तव, आनंद कुमार श्रीवास्तव, विनीत कुमार श्रीवास्तव भईया जी, नवीन कुमार खरे, राजेंद्र श्रीवास्तव, संतोष बिहारी खरे, डॉ. अनिल श्रीवास्तव, कृष्ण कुमार, अदित्य नारायण, मनोज अम्बष्ट समेत बड़ी संख्या में लोग थे।

धूमधाम से मनायी गयी चित्रगुप्त महाराज की पूजा




जोगबनी(अररिया), निज प्रतिनिधि: जोगबनी चित्रांश परिवार द्वारा चित्रगुप्त पूजा समिति के तत्वावधान में स्थानीय पटेल नगर में गुरूवार को अपने अराध्य देव चित्रगुप्त महाराज की पूजा अर्चना धूमधाम से किया।
मौके पर चित्रांश परिवार के सदस्यों ने बताया कि ब्रह्मा जी के हजारों वर्ष तप करने के बाद चित्रगुप्त महाराज की उत्पत्ति हुई थी। उन्होंने बताया कि धरती पर जितने भी प्राणी हैं सभी के ये अराध्य हैं। उन्होंने कहा कि आज के दिन चित्रांश परिवार कलम को हाथ नहीं लगाते। चित्रांश परिवार द्वारा हर वर्ष धूमधाम से चित्रगुप्त महाराज की पूजा अर्चना आयोजित की जाती है। मौके पर काफी संख्या में चित्रांश महिला पुरूषों ने पूजा पंडालों में उपस्थित हो अपने अराध्य देव की पूजा अर्चना की। मौके पर समिति अध्यक्ष अवधेश श्रीवास्तव, महामंत्री संजीव दास, उपाध्यक्ष विश्वनाथ दास, वीरेश सिंहा, अनुभुति सिंहा, विजय प्रसाद सिन्हा, हरिमोहन लाल, भरत लाल दास, देवन दास एवं रीतेश वर्मा विधि व्यवस्था को बनाये रखने में सक्रिय दिखे।

चित्रगुप्त पूजा आज, तैयारी पूरी

Updated on: Thu, 15 Nov 2012 12:03 AM (IST)

जागरण प्रतिनिधि, जमुई : कलम-दवात के देवता भगवान चित्रगुप्त की 15 नवम्बर को होनी वाली पूजा को लेकर कायस्थ बंधुओं ने पूरी तैयारी की है। शहर के चित्रगुप्त कालोनी में निर्धारित स्थल पर पंडाल बनाकर प्रतिमा स्थापित की गई है। यहां शहर में सभी चित्रांग सामूहिक रुप से भगवान चित्रगुप्त की पूजा-अर्चना करेंगे। पूजा समिति के वरिष्ठ सदस्य मनोज कुमार सिन्हा उर्फ पोली जी एवं दीपक कुमार सिन्हा ने बताया कि पूजा के उपरांत सहभोज का भी आयोजन किया गया है। साथ ही संध्या पहर बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि कायस्त बंधु कार्तिक महीने की द्वितीया को कलम दवात के देवता भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा अर्चना करते हैं। भगवान संसार के सभी चीजों का लेखा-जोखा रखते हैं। वैसे कलम से काम करने वाले सभी लोगों को इस भगवान की पूजा करनी चाहिए। कहा जाता है कि सभी कायस्थ बंधु चित्रगुप्त भगवान के वंशज हैं। दूसरी ओर गुरुवार को भैया दूज की तैयारी भी बहने कर रही है। भाई के लंबी उम्र की कामना को लेकर बहनें उपवास में रहकर भैया दूज मनाती है। इस तिथि को भाई अपने बहन के घर भोजन करते हैं। शहर के इंदपै में भी भगवान चित्रगुप्त के पूजा की तैयारी की गई है। चन्द्रशेखर कुमार सिन्हा ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी इंदपै में सामूहिक रुप से पूजा की तैयारी की गई है।

पूजा पंडालों में भगवान चित्रगुप्त के दर्शन को उमड़े श्रद्धालु



पूजा पंडालों में भगवान चित्रगुप्त के दर्शन को उमड़े श्रद्धालु
गर्दनीबाग ठाकुरबाड़ी में आरती करते उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी

समस्त मानव जाति के पाप पुण्यों का लेखा-जोखा रखने वाले कलम-दवात के देवता चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा-अर्चना राजधानी में विभिन्न जगहों पर धूमधाम से मनायी गयी.
विभिन्न पूजा पंडालों में भगवान चित्रगुप्त के दर्शन करने निकले सत्तारूढ़ दल के उपमुख्य सचेतक सह विधायक अरुण कुमार सिन्हा ने कहा कि कलमजीवी समाज राष्ट्र को साक्षर बनाने, समाज के निचले तबके के लोगों के उत्थान में इस समाज की अहम भूमिका है. उन्होंने  कलमजीवी समाज को चित्रगुप्त पूजा की बधाई दी. श्री सिन्हा ने राजधानी व इसके आसपास के सभी पूजा पंडालों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा अर्चना की.
श्री श्री चित्रगुप्त पूजा समिति, दरियापुर गोला कदमकुआं, चित्रगुप्त सेवा एवं पूजा समिति राजेन्द्रनगर, खजांची रोड, रानीघाट, महेन्द्रू, दीवान मुहल्ला, भूतनाथ रोड, बैंक मेंस कॉलोनी, हनुमाननगर, दुसाधी पकड़ी के निकट, कंकड़बाग कम्युनिटी हॉल, कंकड़बाग टेम्पो स्टैण्ड के निकट, पूर्वी इंदिरानगर रोड नंबर-1, इंदिरानगर पोस्टल पार्क, अशोकनगर चित्रगुप्त परिषद्, त्रिलोकी सामुदायिक भवन अशोकनगर, सोरंगपुर, लालूपथ, न्यू बाइपास रोड, महावीरनगर बेउर, न्यू यारपुर, खगौल, अनिसाबाद, वृंदावन कॉलोनी (वाल्मी), आशियाना नगर प्रक्षेत्र, मजिस्ट्रेट कॉलोनी, मिथिला कॉलोनी, नासरीगंज, रामजयपाल नगर गोला रोड बेली रोड, पटेलनगर स्थित पूजा पंडालों में जाकर भगवान चित्रगुप्त को नमस्कार कर लोगों को बधाई दी. इस अवसर पर सुधीर शर्मा, अमरनाथ श्रीवास्तव, आशीष सिन्हा, श्याम किशोर शर्मा, चिन्कू चौधरी, गोविन्द कुमार समेत पूजा पंडालों के नवल किशोर सिन्हा, मनोज सिन्हा, रविनंदन सहाय, अमित कुमार सिन्हा, राजेश वर्मा, चन्द्रशेखर प्रसाद, रंजन श्रीवास्तव, अरविन्द गयासेन, सोनू श्रीवास्तव समेत कई लोग मौजूद थे. श्री श्री चित्रगुप्त पूजा समिति दरियापुर गोला के बैनर तले भगवान चित्रगुप्त की पूजा-अर्चना की गई.
इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सामूहिक पूजन, चित्रांश मिलन समारोह एवं बिरादरी भोज में भाव-विभोर होकर हिस्सा लिया. इस आयोजन को सफल बनाने में नवल किशोर, कुमार मनोज, अधिवक्ता अमिताभ-ऋतुराज, सुधांशु भूषण, अभिषेक निर्मल, लखैयार बंधु, प्रशान्त कुमार गुड्डू, प्रवीण कुमार सिन्हा, कुमार मनीष, संजीव सिन्हा, आकाश श्रीवास्तव शामिल हैं. इस अवसर पर सांसद रामकृपाल यादव, रविशंकर प्रसाद, शत्रुघ्न सिन्हा, पूर्व विधान पाषर्द कुमार राकेश रंजन, विधायक अरुण कुमार सिन्हा, नितिन नवीन, निगम पाषर्द प्रमिला वर्मा, पूर्व निगम पाषर्द पूनम वर्मा, निगम पाषर्द सुषमा साहु, खाद्य एवा उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्याम रजक, जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद समेत कई गणमान्य व्यक्ति पूजा पंडाल में पधारे.
कदमकुआं स्थित अरविन्द इंस्टीच्यूट के बैनर तले चित्रगुप्त जी महाराज का सामूहिक पूजन हुआ. इस अवसर पर इंस्टीच्यूट की प्राचार्या ने कहा कि चित्रगुप्त पूजा के अलावा बहनें यम द्वितीया का पूजन कर अपने भाइयों के दीर्घायु, स्वास्थ्य एवं प्रगति की कामना करती हैं. यह पूजा भाई एवं बहनों के मधुर संबंध का परिचायक है. इस अवसर पर सीमा प्रसाद, निधि प्रसाद, सुनीता ओझा, भोला प्रसाद, नीलू देवी, नन्दनी कुमारी, शिक्षिका ेता सिन्हा, डॉ. सजला शिल्पी, शिल्पी प्रसाद, प्रशांत कुमार सिन्हा, प्रवीण कुमार सिन्हा, अभिषेक निर्मल, रतन कुमार बुलबुल, उदय कुमार, सुमन कुमार समेत कई लोग उपस्थित थे. श्री चित्रगुप्त पूजा समिति कदमकुआं के बैनर तले स्थानीय देवी स्थान लेन जहाजी कोठी में चित्रगुप्त पूजा हषरेल्लास के साथ मनायी गयी.
इस अवसर पर सैकड़ों चित्रांश परिवारों ने एक साथ बैठकर पूजा-अर्चना की और संध्या आरती पूजन के बाद सामूहिक भोज  का भी आयोजन किया गया. बिहार प्रदेश जदयू के प्रवक्ता एवं अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के प्रांतीय अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने भगवान चित्रगुप्त पूजनोत्सव के अवसर पर अशोकनगर चित्रगुप्त पूजा समिति, कंकड़बाग, इंदिरानगर, दरियापुर, गर्दनीबाग, ठाकुरबाड़ी, अनिसाबाद, बाल्मी पूजा समिति, खगौल एवं गोला रोड स्थित पूजा पंडालों में भगवान चित्रगुप्त के दर्शन किये और उपस्थित जन-समुदाय को शुभकामनाएं दी.
शाम में मशहूर गायक एवं गायिकाओं द्वारा पेश किये गये सांस्कृतिक कार्यक्रम का लोगों ने खूब आनंद उठाया. इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, मंत्री भीम सिंह, गिरिराज सिंह, चन्द्रमोहन राय, श्याम रजक, सेनध्यक्ष पाण्डेय, अखिलेश कुमार श्रीवास्तव, विधायक डॉ. रामानंद यादव, अरुण कुमार सिन्हा, नितिन नवीन ने संयुक्त रूप से स्मारिका का विमोचन किया तथा उपस्थित लोगों को शुभकामनाएं दी. भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री एवं बांकीपुर विधानसभा के विधायक नितिन नवीन ने शहर के विभिन्न पूजा पंडालों में जाकर आदिगुरु भगवान चित्रगुप्त की पूजा की और सभी के लिए ज्ञान-सुख-समृद्धि हेतु मंगल कामना की.

चित्रगुप्त जयंती पर पूजी गयी कलम-दवात





Updated on: Thu, 15 Nov 2012 08:44 PM (IST)

हमीरपुर कार्यालय : दीपावली के बाद द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त जयंती मनाई गई। कायस्थ समाज के लोगों ने ने भगवान चित्रगुप्त जी का पूजन कर कलम-दवात की पूजा की।
नगर के पुराना गैस गोदाम में चित्रगुप्त पूजन कार्यक्रम की शुरुआत माल्यार्पण व आरती के साथ हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रमोद खरे ने समाज की बेहतरी के लिए शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। शिक्षा को रोजगारपरक बनाने की बात कहते हुए कहा कि आरक्षण के इस दौर में समाज के लोग अपना स्वयं का रोजगार स्थापित कर परिवार का भरण पोषण करें। रजनीश व विष्णु खरे ने समाज के संगठन पर जोर दिया। इस अवसर पर आशीष खरे, अतुल सक्सेना, रवीन्द्र,बृजेश निगर, नितिन, नीरज श्रीवास्तव सहित तमाम लोगों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के अंत में धर्मेन्द्र खरे ने सभी उपस्थिति कायस्थ बंधुओं का आभार व्यक्त किया।
मंगलकामना करता है कायस्थ समाज
'कार्यस्थ' शब्द अपभ्रंश होते-होते 'कायस्थ' हो गया। जिस तरह क्षत्रिय शस्त्र पूजन, ब्राह्मण शास्त्र पूजन, वैश्य वसना पूजन करते हैं, वैसे ही कायस्थ समाज कलम पूजन करते है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार चित्रगुप्त धर्मराज के अंशावतार और उनके विशिष्ट सहयोगी माने जाते हैं। स्वर्ग का लेखा-जोखा उन्हीं के द्वारा किया जाता है। इनके दो विवाह हुए थे, प्रथम विवाह ब्राह्मणी व द्वितीय क्षत्राणी से हुआ। उनसे क्रमश: 4 व 8 संतानें पैदा हुई जो 12 अलग-अलग श्रेणियों में (निगम, भटनागर, माथुर, सक्सेना आदि) बंटे। इनमें भानू (श्रीवास्तव) सबसे बड़े भाई हैं। कायस्थ समाज पूरे हर्षोल्लास के साथ महाराज चित्रगुप्त का पूजन करता है। इस पूजन में कलम-दवात की पूजा होती है। भगवान से कार्यकुशल होने की कामना की जाती है।


। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की स्तुति।





जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।
कर्मेश जय धर्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो।
जय श्यामतम, चित्रेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

पुर्वज व भगवत अंश जय, कास्यथ कुल, अवतंश जय।
जय शक्ति, बुद्धि विशेष तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय विज्ञ क्षत्रिय धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।
जय शांति न्यायाधीश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय दीन अनुरागी हरी, चाहें दया दृष्टि तेरी।
कीजै कृपा करूणेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

तब नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भव, त्रयताप से।
हो दूर सर्व कलेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।।

जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।
जय पूज्य पद पद्येश तव, शरणागतम् शरणागतम्।

।। भगवान श्री चित्रगुप्त जी की आरती।





ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे।।

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी।। ओम् जय...।।

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै।। ओम् जय...।।

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकट भये स्वामी।। ओम् जय..।।

कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै।। ओम् जय...।।

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये।। ओम् जय...।।

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा।। ओम् जय...।।

दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता।। ओम् जय...।।

बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी।। ओम् जय...।।

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं।। ओम् जय...।।

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
'नानक' शरण तिहारे, आस न दूजी करते।। ओम् जय...।

Sunday, November 11, 2012

जब राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अपने सेवक से मांगी क्षमा




भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के जीवन की एक घटना है। एक बार उपहार में उन्हें हाथी दांत की एक कलम-दवात मिली। वह उन्हें इतनी प्रिय हो गई कि लिखते समय वे उसी का अधिक प्रयोग करते थे।
जिस कमरे में उन्होंने कलम-दवात रखी थी, उसकी सफाई का काम उनका सेवक तुलसी करता था। एक दिन मेज साफ करते समय कपड़े की फटकार से कलम-दवात नीचे गिरकर टूट ग
ए। राजेंद्र बाबू को जब यह बात पता लगी तो उन्होंने नाराज होते हुए अपने सचिव से कहा- ऐसे आदमी को तुरंत बदल दो।
सचिव ने तुलसी को वहां से हटाकर दूसरा काम दे दिया। उस दिन राजेंद्र बाबू के मन में खलबली मची रही कि आखिर एक मामूली-सी गलती के लिए उन्होंने तुलसी को इतना बड़ा दंड क्यों दिया? लाख सावधानी बरतने पर भी ऐसी घटना किसी के साथ हो सकती है। शाम को उन्होंने तुलसी को बुलवाया।
उसके आते ही राजेंद्र बाबू कुर्सी से उठकर खड़े हो गए और बोले- तुलसी, मुझे माफ कर दो। तुलसी पहले तो सकपका गया, फिर राजेंद्र बाबू के पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा। तब राजेंद्र बाबू बोले कि तुम अपनी पहली वाली डच्यूटी पर जाओ, तब मुझे संतोष होगा। कृतज्ञता भरी आंखों से तुलसी ने अपना पुराना काम संभाल लिया।
सार यह है कि व्यक्ति को पद, स्तर, शिक्षा, जाति सभी से परे एक इंसान के रूप में देखने वाले की दृष्टि सम होती है और इसीलिए वह सभी से समान व स्नेहपूर्ण व्यवहार करता है। महानता ऐसे ही व्यवहार से प्राप्त होती है।



ठाकरे के बहाने कायस्थों की कहानी


नवभारत टाइम्स | Sep 15, 2012, 04.00AM IST
संजय निरूपम
हाल ही में महाराष्ट्र के जानेमाने समाज सेवक और लेखक-पत्रकार प्रबोधनकार ठाकरे की आत्मकथा के एक पन्ने की कुछ पंक्तियों की चर्चा हुई, जिस पर राजनीतिक घमासान हो गया। प्रबोधनकार ठाकरे का मूल नाम केशव सीताराम ठाकरे है। वे शिवसेना के सर्वोच्च नेता बाला साहेब ठाकरे के पिता हैं। इन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनका समाज मूलत: महाराष्ट्र का नहीं है और हजारों साल पहले मगध से आया है। वाया चित्तौड़गढ़ और भोपाल होते हुए। यह जानकारी उद्धृत की कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने। इनका उद्देश्य था यह साबित करना कि ठाकरे परिवार मूलत: अप्रवासी है और उस पर भी बिहारी।

जाहिर है इस पर बवाल होना था क्योंकि मुंबई में रहने वाले अप्रवासी बिहारियों को सदा निशाना बनाने वाले ठाकरे परिवार के लोग अगर मूलत: बिहार के हैं। और यह निष्कर्ष किसी साधारण शोधकर्ता के शोध में उपलब्ध नहीं है, बल्कि आज के उद्धव और राज ठाकरे के विद्वान दादा प्रबोधनकार ठाकरे के लेखन में उपलब्ध है, तो इसे नकारना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि यह जानकारी उनके समाज के बारे में सही है, परिवार के बारे में नहीं। समाज और परिवार को कितना अलग किया जा सकता है, यह एक अनुत्तरित प्रश्न है।

दरअसल इस तर्क को काटने के लिए ठाकरे परिवार के पास कोई तथ्य नहीं है। इसलिए कुतर्कों का सहारा लिया जा रहा है। तो सच क्या है? ठाकरे परिवार की सामाजिक और जातिगत पृष्ठभूमि क्या है? उत्तर भारत में जो कायस्थ जाति है, उसे महाराष्ट्र में सीकेपी कहते हैं। अर्थात चंद्रसेनिम कायस्थ प्रभु। ठाकरे परिवार सीकेपी है। प्रबोधनकार ठाकरे ने अपनी आत्मकथा में इसी सीकेपी समाज के अनवरत विस्थापन की कथा सुनाई है। एक कथा के अनुसार चंद्रसेना नाम की एक महारानी थीं। जिन दिनों वह गर्भवती थीं, उनके पति की हत्या कर दी गई थी। कब, कहां और किसने, इस पर अलग-अलग मत हैं। पति की हत्या के बाद महारानी चंद्रसेना ने विस्थापन का सहारा लिया। उन्हीं के वंशज सीकेपी हैं। पुराणों में चंद्रसेना को देवी माना गया है।
रबोधनकार ने लिखा है कि उनका समाज राजा महापद्मनंद के जमाने में मगध में रहता था। यह दो हजार साल से ज्यादा पुरानी बात है। वह चंद्र गुप्त काल है। चंद्र गुप्त से पहले मगध पर नंद वंश का राज था। नंद वंश अत्याचारों और कुशासन के लिए कुख्यात था। तभी चाणक्य ने चंद्र गुप्त का सृजन किया था। प्रबोधनकार लिखते हैं कि नंद वंश के राजा के अत्याचारों से त्रस्त होकर उनका समाज मगध से विस्थापित हुआ था। फिर प्रकारांतर में चित्तौड़गढ़, भोपाल होते हुए महाराष्ट्र पहुंचा। हो सकता है महारानी चंद्रसेना पर हुए जुल्मों की कहानी प्रबोधनकार के इस शोध का आधार हो। सीकेपी महाराष्ट्र का एक शिक्षित, बुद्धिजीवी और सभ्य समाज माना जाता है। बड़े लेखक, पत्रकार और प्रशासक इस समाज ने दिए हैं। इसी समाज के जनरल अरुण कुमार वैद्य भी थे।

उत्तर भारत में अच्छी तादाद में पाए जाने वाले कायस्थ समाज और सीकेपी में काफी समानता है। दोनों समाज अपनी बुद्धिजीविता और प्रशासनिक कौशल के लिए जाना जाता है। इन्हीं कायस्थों की एक शाखा है सीकेपी। लेकिन कायस्थ जाति की मूल भूमि ऐतिहासिक तौर पर मगध प्रांत का वह क्षेत्र है, जो आज बिहार उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है। चाहे महाराष्ट्र हो या बंगाल या उड़ीसा या असम या राजस्थान-मध्य प्रदेश, यहां के कायस्थ मूलत: उत्तर भारत से रिश्ता रखते हैं। आज इनके उपनाम भिन्न हैं, पर उनकी फितरत समान है। कहते हैं, ब्रह्मा की काया से उत्पन्न हुए थे कायस्थ। इनके आराध्य देवता हैं चित्रगुप्त। पुराणों के अनुसार भगवान चित्रगुप्त स्वर्ग के मुनीम थे। वे मनुष्य जाति के पाप-पुण्य का हिसाब रखते थे। इनके वंशज भी परंपरा से हिसाब-किताब रखने का काम करते रहे हैं। पुराने जमाने के तमाम राजाओं के पास मुनीमगिरी करने के लिए जो वर्ग सर्वाधिक पसंदीदा था, वही कायस्थ समाज है। मगध काल में इसे पहली मान्यता मिली। फिर मुगलों के जमाने में और अंग्रेजों के शासनकाल में यह समाज विश्वसनीय प्रशासक बनकर उभरा। सम्राट अकबर के मंत्री टोडरमल इसी समाज के थे। इन्हें मुंशी जी कहा जाता था। साहित्य के शिखर पर आरूढ़ होने के बाद भी धनपत राय को मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना गया।

लिखने-पढ़ने, हिसाब-किताब और सभ्य व अनुशासित मगर नफासत की जिंदगी जीने के लिए मशहूर कायस्थ समाज ने देश को अनेक महापुरुष दिए हैं। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद प्रसाद, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, सच्चिदानंद सिन्हा, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा इत्यादि। नेता जी सुभाष चंद बोस और ज्योति बसु बंगाल के कायस्थ थे। उड़ीसा के पटनायक मूलत: कायस्थ समाज के हैं। चाहे वे जेबी पटनायक हों या बीजू पटनायक।

आधुनिक कायस्थ समाज का मूल उद्भव स्थल क्या है? इस पर शोध हुआ है और अभी होना है। इस समाज की फितरत के दो पहलुओं को समझा जाए तो स्वयं स्पष्ट हो जाता है। एक तो यह समाज नौकरीपेशा है। दूसरा, इसकी घुमंतू प्रवृत्ति है। जैसे आज के अफसर सदा तबादले के शिकार होते रहे हैं, वैसे ही उस जमाने के कायस्थ या तो स्वयं एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते थे या उन्हें भेजा जाता था। या वे पड़ोसी राज्यों द्वारा मंगवाए जाते थे। मगध के कायस्थ अपनी प्रशासनिक क्षमता के लिए कलिंगा बुलवाए गए होंगे, जो आज के पटनायक और नंदा के तौर पर जाने जाते है। प्रागैतिहासिक काल के बाद आधुनिक प्रशासन का पहला ऐतिहासिक दस्तावेज मगध काल में मिलता है। राजधानी पाटलिपुत्र थी, जो आज का पटना है। उस जमाने में नक्शे पर दिल्ली और मुंबई तो थी पर राष्ट्रीय महत्व पाटलिपुत्र का था। तमाम राष्ट्रीय घटनाओं का केंद व आकर्षण पटना था। वहां लोग काम की तलाश में जाते थे और वहीं से भारत की दूसरी रियासतों में जाते भी थे।

आज भी देशभर में अफसरों की कुल संख्या में सर्वाधिक कायस्थ ही हैं। और कायस्थों में भी बड़ी संख्या नौकरीपेशा लोगों की है। व्यवसाय या खेती कायस्थों की फितरत में बहुत कम ही रही है। इस समाज की हर दूसरी पीढ़ी अपने गांव या शहर को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर सदा-सदा के लिए बस जाने के लिए विख्यात है। यही वजह है कि पाकिस्तान में भी कायस्थ पाए जाते हैं। धर्मांतरित मुस्लिमों में भी कायस्थों की एक अलग धारा है। दक्षिण भारत में भी नायर उपनाम के कायस्थ पाए जाते हैं। मगर शोध किया जाए तो सबके मूल में मगध का कनेक्शन मिलता है। मसलन मशहूर पत्रकार प्रीतीश नंदी बंगाली कायस्थ हैं, पर उनका मूल गांव भागलपुर है। जिन कायस्थों को बिहार या यूपी में मुंशी कहा जाता है, वे बंगाल में दासमुंशी के नाम से जाने गए।

Friday, November 9, 2012

इच्छा मृत्यु को भीष्म पितामह ने भी की थी चित्रगुप्त पूजा

कहते हैं कि श्रापग्रस्त राजा सुदास चित्रगुप्त पूजा के दिन ही भगवान चित्रगुप्त की पूजा कर स्वर्ग के भागीदार बने थे। महाभारत काल में भीष्म पितामह भी भगवान चित्रगुप्त की पूजा के उपरांत उनसे इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त किए थे।

सभी मनोकामना पूर्ण होगी

श्रीचित्रगुप्त भगवान की पूजा-अर्चना करने के लिए पहले श्रद्धालु स्नान आदि कर लें। नया वस्त्र धारण कर भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा आसन पर विराजमान कर दे। रोली चंदन केशर, धूप, फूल, कुमकुम, इत्र के साथ चित्रगुप्त की पूजा करें।
श्रद्धालु भक्त इस मंत्र-
ऊं चित्रावसो स्वस्ति ते पारमशीय!
धर्मराज सभा संस्थकृत विवेकिनम्!!
आवाहे चित्रगुप्त लेखनी पत्र हस्तकम!
ऊं भू भूर्व स्व चित्रगुप्ताय नम: !!
से पूजा करने से सभी मनोकामना पूर्ण होगी।

पूजा से पापों से मिलती है मुक्ति

ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो मनुष्य तुम्हारी पूजा करेगा इसकी सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी। वह पृथ्वी पर आनंद से जीवन यापन करेगा। तभी से भगवान चित्रगुप्त की पूजा पृथ्वी लेक पर होने लगी। खासकर कायस्थ जाति के ये कुलदेवता भी है।

लेखनी कटनी हस्ते, चित्रगुप्त नमस्तुते

 
 मान्यता के अनुसार धर्मराज को धर्म प्रधान बनाकर सबके पितामह ब्रह्मा ने उन्हें अकर्मण्यता त्यागने को कहा। ब्रह्मा के आज्ञानुसार धर्मराज ने निवेदन किया व कहा कि कर्मो के लेखा-जोखा का कार्य सरल नहीं है। जीवों में देशकाल व उनके कर्म अनंत हैं। इसलिए ऐसा सहायक मित्र प्रधान करें जो नितांत धार्मिक, न्यायिक, ब्रह्मानिष्ठ व वेदशास्त्र का ज्ञाता हो। तब ब्रह्मा ने धर्मराज की बात स्वीकार कर घोर तपस्या की। जब नेत्र खोला तो अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन व चन्द्रमा के समान मुख वाले को पाया। जिनके हाथ में कलम दवात थी। तभी से चित्रगुप्त पूजा मनाई जाती है।

यहां कलम-दवात और कागज चढ़ाने से बदलता है भाग्य!









भोपाल। कहा जाता है कि भाग्य तो जन्म के साथ ही लिख जाता है, मगर एक स्थान ऐसा है जहां कागज, कलम और दवात चढ़ाने से भाग्य बदलकर नए सिरे से लिख जाता है। यह स्थान मध्य प्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में है, जहां भगवान चित्रगुप्त और धर्मराज एक साथ मिलकर आशीर्वाद देते हैं।

उज्जैन नगरी के यमुना तलाई के किनारे एक मंदिर में चित्रगुप्त एवं धर्मराज एक साथ विराजे हैं। यह स्थान किसी तीर्थ से कम नहीं है। मान्यता है कि इस मंदिर में कलम, दवात व डायरी चढ़ाने मात्र से मनोकामना पूरी हो जाती है। यही कारण है कि इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले श्रद्घालुओं के हाथों में फल-फूल न होकर कलम, स्याही और डायरी नजर आती है।

चित्रगुप्त और धर्मराज की उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग कथाएं है। भगवान चित्रगुप्त के बारे में कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं ब्रह्मा जी के हजारों साल के तप से हुई है। बात उस समय की है जब महाप्रलय के बाद सृष्टि की उत्पत्ति होने पर धर्मराज ने ब्रह्मा से कहा कि इतनी बड़ी सृष्टि का भार मैं संभाल नहीं सकता।

ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए कई हजार वर्षो तक तपस्या की और उसके फलस्वरूप ब्रह्मा जी के सामने एक हाथ में पुस्तक तथा दूसरे हाथ में कलम लिए दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। जिनका नाम ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त रखा।

ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त से कहा कि आपकी उत्पत्ति मनुष्य कल्याण और मनुष्य के कर्मो का लेखा जोखा रखने के लिए हुई है अत: मृत्युलोक के प्राणियों के कर्मो का लेखा जोखा रखने और पाप-पुण्य का निर्णय करने के लिए आपको बहुत शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए आप महाकाल की नगरी उज्जैन में जाकर तपस्या करें और मानव कल्याण के लिए शक्तियां अर्जित करे।

कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर चित्रगुप्त महाराज ने उज्जैन में हजारों साल तक तपस्या कर मानव कल्याण के लिए सिद्घियां एव शक्तियां प्राप्त की। भगवान चित्रगुप्त की उपासना से सुख-शांति और समृद्घि प्राप्त होती है और मनुष्य का भाग्य उज्जवल हो जाता है। इनकी विशेष पूजा कार्तिक शुक्ल तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वितीया को की जाती है।

भगवान चित्रगुप्त के पूजन में कलम और दवात का बहुत महत्व है। उज्जैन को भगवान चित्रगुप्त की तप स्थली के रूप में जाना जाता है। धर्मराज के बारे में पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि वह दीपावली के बाद आने वाली भाई दूज पर यहां अपनी बहन यमुना से राखी बंधाने आए थे तभी से वह इस स्थान पर विराजित हैं। कहा जाता है कि धर्मराज द्वारा यहां पर अपनी बहन से दूज के दिन राखी बंधवाने के बाद से भाई दूज मनाया जा रहा है। आज भी यहां पर धर्मराज और चित्रगुप्त मंदिर के सामने यमुना सागर स्थित है। श्रद्घालुओं को इनके दर्शन व पूजन करने से मोक्ष मिलता है।

चित्रगुप्त जी के ठीक सामने चारभुजाधारी धर्मराज जी एक हाथ में अमृत कलश दो हाथों में शस्त्र एवं एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा के साथ विराजित है। धर्मराज की मूर्ति के दोनों ओर मनुष्यों को अपने कमोर्ं की सजा देते यमराज के दूत हैं। इतना ही नहीं ब्रम्हा, विष्णु महेश की भी प्रतिमाएं हैं।

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