भागवत महापुराण की कथा है. एक युवती यमुना के तट पर एकांत में बैठी फूट - फूट कर रो रही थी. उसके आस - पास दो अत्यंत अशक्त वृद्ध मूर्छित अवस्था में पड़े थे. नारद जी को दया आई और वो उसके पास जाकर बोले - हे देवि, तुम कौन हो? ये दोनों कौन हैं? और तुम रो क्यों रही हो? इस पर स्त्री ने उत्तर दिया कि मै भक्ति हूँ, ये दोनों मेरे पुत्र ज्ञान और वैराग्य हैं. श्री कृष्ण अपने धाम को वापस लौट गए हैं और उनके जाते ही पृथ्वी पर कलियुग आ गया है. कलियुग के प्रभाव से सबने मेरा तिरस्कार कर दिया है और इसीलिए मै और मेरे ये पुत्र अशक्त हो गए हैं. यमुना के तट पर आने से मेरी युवावस्था पुनः लौट आई किन्तु मेरे पुत्र अभी भी मूर्छित हैं. मुझे समझ में नही आ रहा है कि मै कहाँ जाऊं और क्या करूँ? ऐसा कहकर भक्ति पुनः विलाप करने लगी. तब नारद जी ने उसको वचन दिया कि तुम चुप हो जाओ और मै तुमको विश्वास दिलाता हूँ कि इसी कलियुग में प्रत्येक घर में और प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर तुम्हारा वास होगा. यही कारण है कि भीषण पराधीनता का काल होने के उपरांत भी चैतन्य महाप्रभु का काल भक्तिकाल ही कहलाता है. वर्तमान काल में भी भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु ने स्वयं, प्रचारकों एवं प्रचार माध्यमों के द्वारा पृथ्वी के कोने - कोने में भक्ति के अद्वितीय रस की गंगा बहा रखी है. आने वाले समय में विश्व के वर्तमान काल को भक्ति का काल कहा जायेगा.!
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