Jai Chitra Gupt JI

Jai Chitra Gupt JI
Global Kayasth Family -GKF

Wednesday, December 5, 2012

vचित्रगुप्त रहस्य-Mansi Srivastava

आचार्य संजीव 'सलिल'
*
चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं

परात्पर परमब्रम्ह श्री चित्रगुप्त जी सकल सृष्टि के कर्मदेवता हैं, केवल कायस्थों के नहीं। उनके अतिरिक्त किसी अन्य कर्ण देवता का उल्लेख किसी भी धर्म में नहीं है, न ही कोई धर्म उनके कर्म देव होने पर आपत्ति करता है। अतः, निस्संदेह उनकी सत्ता सकल सृष्टि के समस्त जड़-चेतनों तक है। पुराणकार कहता है:

''चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानाम सर्व देहिनाम.''

अर्थात श्री चित्रगुप्त सर्वप्रथम प्रणम्य हैं जो आत्मा के रूप में सर्व देहधारियों में स्थित हैं. आत्मा क्या है? सभी जानते और मानते हैं कि 'आत्मा सो परमात्मा' अर्थात परमात्मा का अंश ही आत्मा है। स्पष्ट है कि श्री चित्रगुप्त जी ही आत्मा के रूप में समस्त सृष्टि के कण-कण में विराजमान हैं। इसलिए वे सबके लिए पूज्य हैं सिर्फ कायस्थों के लिए नहीं।

चित्रगुप्त निर्गुण परमात्मा हैं

सभी जानते हैं कि आत्मा निराकार है। आकार के बिना चित्र नहीं बनाया जा सकता। चित्र न होने को चित्र गुप्त होना कहा जाना पूरी तरह सही है। आत्मा ही नहीं आत्मा का मूल परमात्मा भी मूलतः निराकार है इसलिए उन्हें 'चित्रगुप्त' कहा जाना स्वाभाविक है। निराकार परमात्मा अनादि (आरंभहीन) तथा (अंतहीन) तथा निर्गुण (राग, द्वेष आदि से परे) हैं।

चित्रगुप्त पूर्ण हैं

अनादि-अनंत वही हो सकता है जो पूर्ण हो। अपूर्णता का लक्षण आराम तथा अंत से युक्त होना है। पूर्ण वह है जिसका क्षय (ह्रास या घटाव) नहीं होता। पूर्ण में से पूर्ण को निकल देने पर भी पूर्ण ही शेष बचता है, पूर्ण में पूर्ण मिला देने पर भी पूर्ण ही रहता है। इसे 'ॐ' से व्यक्त किया जाता है। इसी का पूजन कायस्थ जन करते हैं।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते 
*
पूर्ण है यह, पूर्ण है वह, पूर्ण कण-कण सृष्टि सब
पूर्ण में पूर्ण को यदि दें निकाल, पूर्ण तब भी शेष रहता है सदा।

चित्रगुप्त निर्गुण तथा सगुण हैं

चित्रगुप्त निराकार ही नहीं निर्गुण भी है। वे अजर, अमर, अक्षय, अनादि तथा अनंत हैं। परमेश्वर के इस स्वरूप की अनुभूति सिद्ध ही कर सकते हैं इसलिए सामान्य मनुष्यों के लिए वे साकार-सगुण रूप में प्रगट होते हैं। आरम्भ में वैदिक काल में ईश्वर को निराकार और निर्गुण मानकर उनकी उपस्थिति हवा, अग्नि (सूर्य), धरती, आकाश तथा पानी में अनुभूत की गयी क्योंकि इनके बिना जीवन संभव नहीं है। इन पञ्च तत्वों को जीवन का उद्गम और अंत कहा गया। काया की उत्पत्ति पञ्चतत्वों से होना और मृत्यु पश्चात् आत्मा का परमात्मा में तथा काया का पञ्च तत्वों में विलीन होने का सत्य सभी मानते हैं।

अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय देह।
परमात्मा का अंश है, आत्मा निस्संदेह।।
*
परमब्रम्ह के अंश कर, कर्म भोग परिणाम 
जा मिलते परमात्म से, अगर कर्म निष्काम।।

कर्म ही वर्ण का आधार

श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण कहते हैं: 'चातुर्वर्ण्यमयासृष्टं गुणकर्म विभागशः' अर्थात गुण-कर्मों के अनुसार चारों वर्ण मेरे द्वारा ही बनाये गये हैं। स्पष्ट है कि वर्ण जन्म पर आधारित नहीं हो था। वह कर्म पर आधारित था। कर्म जन्म के बाद ही किया जा सकता है, पहले नहीं। अतः, किसी जातक या व्यक्ति में बुद्धि, शक्ति, व्यवसाय या सेवा वृत्ति की प्रधानता तथा योग्यता के आधार पर ही उसे क्रमशः ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वर्ग में रखा जा सकता था। एक पिता की चार संतानें चार वर्णों में हो सकती थीं। मूलतः कोई वर्ण किसी अन्य वर्ण से हीन या अछूत नहीं था। सभी वर्ण समान सम्मान, अवसरों तथा रोटी-बेटी सम्बन्ध के लिए मान्य थे। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक अथवा शैक्षणिक स्तर पर कोई भेदभाव मान्य नहीं था। कालांतर में यह स्थिति पूरी तरह बदल कर वर्ण को जन्म पर आधारित मान लिया गया।

चित्रगुप्त पूजन क्यों और कैसे?

श्री चित्रगुप्त का पूजन कायस्थों में प्रतिदिन विशेषकर यम द्वितीया को किया जाता है। कायस्थ उदार प्रवृत्ति के सनातन धर्मी हैं। उनकी विशेषता सत्य की खोज करना है इसलिए सत्य की तलाश में वे हर धर्म और पंथ में मिल जाते हैं। कायस्थ यह जानता और मानता है कि परमात्मा निराकार-निर्गुण है इसलिए उसका कोई चित्र या मूर्ति नहीं है, उसका चित्र गुप्त है। वन हर चित्त में गुप्त है अर्थात हर देहधारी में उसका अंश होने पर भी वह अदृश्य है। जिस तरह कहने की थाली में पानी न होने पर भी हर खाद्यान्न में पानी होता है उसी तरह समस्त देहधारियों में चित्रगुप्त अपने अंश आत्मा रूप में विराजमान होते हैं। चित्रगुप्त ही सकल सृष्टि के मूल तथा निर्माणकर्ता हैं। सृष्टि में ब्रम्हांड के निर्माण, पालन तथा विनाश हेतु उनके अंश ब्रम्हा-महासरस्वती, विष्णु-महालक्ष्मी तथा शिव-महाशक्ति के रूप में सक्रिय होते हैं। सर्वाधिक चेतन जीव मनुष्य की आत्मा परमात्मा का ही अंश है।मनुष्य जीवन का उद्देश्य परम सत्य परमात्मा की प्राप्ति कर उसमें विलीन हो जाना है। अपनी इस चितन धारा के अनुरूप ही कायस्थजन यम द्वितीय पर चित्रगुप्त पूजन करते हैं।

सृष्टि निर्माण और विकास का रहस्य:

आध्यात्म के अनुसार सृष्टिकर्ता की उपस्थिति अनहद नाद से जानी जाती है। यह अनहद नाद सिद्ध योगियों के कानों में परतो पल भँवरे की गुनगुन की तरह गूँजता हुआ कहा जाता है। इसे 'ॐ' से अभिव्यक्त किया जाता है। विज्ञान सम्मत बिग बैंग थ्योरी के अनुसार ब्रम्हांड का निर्माण एक विशाल विस्फोट से हुआ जिसका मूल यही अनहद नाद है। इससे उत्पन्न ध्वनि तरंगें संघनित होकर कण तथा क्रमश: शेष ब्रम्हांड बना। यम द्वितीय पर कायस्थ एक कोरा सफ़ेद कागज़ लेकर उस पर चन्दन, हल्दी, रोली, केसर के तरल 'ॐ' अंकित करते हैं। यह अंतरिक्ष में परमात्मा चित्रगुप्त की उपस्थिति दर्शाता है। 'ॐ' परमात्मा का निराकार रूप है। निराकार के साकार होने की क्रिया को इंगित करने के लिए 'ॐ' को श्रृष्टि की सर्वश्रेष्ठ काया मानव का रूप देने के लिए उसमें हाथ, पैर, नेत्र आदि बनाये जाते हैं। तत्पश्चात ज्ञान की प्रतीक शिखा मस्तक से जोड़ी जाती है। शिखा का मुक्त छोर ऊर्ध्वमुखी (ऊपर की ओर उठा) रखा जाता है जिसका आशय यह है कि हमें ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा में विलीन (मुक्त) होना है।

बहुदेव वाद की परंपरा 

इसके नीचे कुछ श्री के साथ देवी-देवताओं के नाम लिखे जाते हैं, फिर दो पंक्तियों में 9 अंक इस प्रकार लिखे जाते हैं कि उनका योग 9 बार 9 आये। परिवार के सभी सदस्य अपने हस्ताक्षर करते हैं और इस कागज़ के साथ कलम रखकर उसका पूजन कर दण्डवत प्रणाम करते हैं। पूजन के पश्चात् उस दिन कलम नहीं उठाई जाती। इस पूजन विधि का अर्थ समझें। प्रथम चरण में निराकार निर्गुण परमब्रम्ह चित्रगुप्त के साकार होकर सृष्टि निर्माण करने के सत्य को अभिव्यक्त करने के पश्चात् दूसरे चरण में निराकार प्रभु के साकार होकर सृष्टि के कल्याण के लिए विविध देवी-देवताओं का रूप धारण कर जीव मात्र का ज्ञान के माध्यम से कल्याण करने के प्रति आभार विविध देवी-देवताओं के नाम लिखकर व्यक्त किया जाता है। ज्ञान का शुद्धतम रूप गणित है। सृष्टि में जन्म-मरण के आवागमन का परिणाम मुक्ति के रूप में मिले तो और क्या चाहिए? यह भाव दो पंक्तियों में आठ-आठ अंक इस प्रकार लिखकर अभिव्यक्त किया जाता है कि योगफल नौ बार नौ आये।

पूर्णता प्राप्ति का उद्देश्य 

निर्गुण निराकार प्रभु चित्रगुप्त द्वारा अनहद नाद से साकार सृष्टि के निर्माण, पालन तथा नाश हेतु देव-देवी त्रयी तथा ज्ञान प्रदाय हेतु अन्य देवियों-देवताओं की उत्पत्ति, ज्ञान प्राप्त कर पूर्णता पाने की कामना तथा मुक्त होकर पुनः परमात्मा में विलीन होने का समुच गूढ़ जीवन दर्शन यम द्वितीया को परम्परगत रूप से किये जाते चित्रगुप्त पूजन में
अन्तर्निहित है। इससे बड़ा सत्य कलम व्यक्त नहीं कर सकती तथा इस सत्य की अभिव्यक्ति कर कलम भी पूज्य हो जाती है इसलिए कलम की पूजा की जाती है। इस गूढ़ धार्मिक तथा वैज्ञानिक रहस्य को जानने तथा मानने के प्रमाण स्वरूप परिवार के सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे-बच्चियां अपने हस्ताक्षर करते हैं, जो बच्चे लिख नहीं पाते उनके अंगूठे का निशान लगाया जाता है। उस दिन व्यवसायिक कार्य न कर आध्यात्मिक चिंतन में लीन रहने की परम्परा है।

'ॐ' की ही अभिव्यक्ति अल्लाह और ईसा में भी होती है। सिख पंथ इसी 'ॐ' की रक्षा हेतु स्थापित किया गया। 'ॐ' की अग्नि आर्य समाज और पारसियों द्वारा पूजित है। सूर्य पूजन का विधान 'ॐ' की ऊर्जा से ही प्रचलित हुआ है। 

उदारता तथा समरसता की विरासत

यम द्वितीया पर चित्रगुप्त पूजन की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक पूजन विधि ने कायस्थों को एक अभिनव संस्कृति से संपन्न किया है। सभी देवताओं की उत्पत्ति चित्रगुप्त जी से होने का सत्य ज्ञात होने के कारण कायस्थ किसी धर्म, पंथ या सम्प्रदाय से द्वेष नहीं करते। वे सभी देवताओं, महापुरुषों के प्रति आदर भाव रखते हैं। वे धार्मिक कर्म कांड पर ज्ञान प्राप्ति को वरीयता देते हैं। चित्रगुप्त जी के कर्म विधान के प्रति विश्वास के कारण कायस्थ अपने देश, समाज और कर्त्तव्य के प्रति समर्पित होते हैं। मानव सभ्यता में कायस्थों का योगदान अप्रतिम है। कायस्थ ब्रम्ह के निर्गुण-सगुण दोनों रूपों की उपासना करते हैं। कायस्थ परिवारों में शैव, वैष्णव, गाणपत्य, शाक्त, राम, कृष्ण, सरस्वतीसभी का पूजन किया जाता है। आर्य समाज, साईं बाबा, युग निर्माण योजना आदि हर रचनात्मक मंच पर कायस्थ योगदान करते मिलते हैं।

जयंती पर याद किए गए डॉ. राजेंद्र प्रसाद


मीरजापुर : जिले में सोमवार को विभिन्न स्थानों पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉॅ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती मनाई गई। लोगों ने उनके चित्र पर माल्यार्पण किया और गोष्ठी आदि का आयोजन कर उनका स्मरण किया।
बरियाघाट स्थित चित्रगुप्त मंदिर में शाम को हुई गोष्ठी में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। उनके चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ।
 इस अवसर पर दिलीप श्रीवास्तव, प्रभात कुमार श्रीवास्तव, सुधांशु अस्थाना, अरूण कुमार आदि उपस्थित थे। अध्यक्षता दिलीप कुमार श्रीवास्तव ने किया।
उधर लोहंदी रोड स्थित माधव कुंज पर जयंती को राष्ट्रीय चित्रांश दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर आयोजित गोष्ठी का आरंभ मुख्य अतिथि गोरखपुर के वाणिज्य कर के उपायुक्त संजय श्रीवास्तव ने राजेंद्र बाबू के चित्र पर माल्यार्पण कर किया। अपने संबोधन में मुख्य अतिथि ने कहा कि बहुमुंखी प्रतिभा के धनी डॉ. राजेंद्र प्रसाद आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक थे। वे एक मेधावी छात्र, सफल वकील, निस्वार्थ समाजसेवी, कर्मठ देशभक्त, योग्य प्रशासक, प्रबुद्ध लेखक व सब कुछ थे। इसके अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि डॉ. शक्ति श्रीवास्तव, रजत श्रीवास्तव, राजेश सिन्हा, जंग बहादुर लाल, विंध्यवासिनी लाल श्रीवास्तव आदि थे। अध्यक्षता ओमप्रकाश श्रीवास्तव व संचालन दीपक श्रीवास्तव ने किया।

Monday, December 3, 2012

देश के नाम आप के गान




गणतंत्र दिवस 26 
जनवरी 2013 पर
ग्लोबल कायस्थ फॅमिली 
द्वारा आयोजित *देश के नाम आप के गान यानि आप अपने जज्बे और जूनून को एक कविता या स्लोगन में लिखे !

https://www.facebook.com/groups/global.kayasth.family/

www.globalkayasthfamily.com

*कुछ बात है
कि हस्ती मिटती नहीँ
हमारी,
सदियोँ रहा है
दुश्मन दौर-ए-जहाँ
हमारा ।
सारे जहा से अच्छा
हिन्दुस्तान हमारा।।।*


भारत- विश्व के नक़्शे में
एक छोटा सा देश, जिसने
न जाने कितनी समस्याओ
को सहने के बाद भी अपने
अस्तित्व को बचाए रखा
है। चिरकाल से मुगलो,
अंग्रेजो तथा बाहरी मुल्को
ने इस पर राज्य किया है
तथा इसकी हस्ती को
मिटाने के कोशिश की है ।
किन्तु इसके तिरंगे में कुछ
ऐसी बात है कि हर बार
इसने जमाने को दिखा
दिया कि इस देश का कोई
कुछ भी बिगाड़ नहीं
सकता है।
हमारी मिटटी में, हमारे
तिरंगे में कुछ ऐसी ख़ास
बात है कि जरुरत के
समय आम आदमी भी देश
की रक्षा के लिय योध्दा
बन जाता है।
पंद्रह अगस्त, छब्बीस
जनवरी कुछ लोगो के
लिये छुट्टी मात्र है, शायद
उन्हें नहीं पता इसी
आजादी के लिए कितने
महापुरुषों ने अपने जीवन
का बलिदान
हँसते-हँसते दिया है।

गणतंत्र दिवस में
अब कुछ ही दिन बाकी है,
इस शुभ दिन को हम
सबको साथ मिलकर
हर्षोल्लास के साथ मनाना
चाहिए।


धन्यवाद

ग्लोबल कायस्थ टीम

Monday, November 19, 2012

कायस्थ समाज ने की चित्रगुप्त की पूजा



Updated on: Fri, 16 Nov 2012 08:38 AM (IST)

रांची : राजधानी में कई जगहों पर कायस्थ समाज ने चित्रगुप्त की पूजा अर्चना की। श्रद्धासुमन अर्पित किए। अशोक नगर में श्री चित्रगुप्ता पूजा समिति ने दिन के 11 बजे से कार्यक्रम शुरू किया। पूजा-अर्चना एवं हवन किया गया। इसके बाद महाआरती में सभी लोगों ने भाग लिया। आयोजन में सांसद सुबोधकांत सहाय, जस्टिस प्रशांत कुमार, आईजी आलोक राज, आईजी आरके मल्लिक एवं समिति के अध्यक्ष मुकेश कुमार, बरखा सिन्हा, शंकर वर्मा, संजय शरण, प्रवीण नंदन, राकेश रंजन, अमरेश कुमार आदि ने भाग लिया। संध्या सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके बाद भाई भोज में एडीजी अशोक सिन्हा, एडीजीपी नीरज सिन्हा, जस्टिस बीके सिन्हा, मुन्ना भरथुहार, रतनेश कुमार, शैलेश सिन्हा, दीपक प्रकाश, राजीव रंजन प्रसाद, प्रणव कुमार, डा. अमर सहित सैकड़ों लोगों ने भाग लिया।
हेसल में भी पूजा का आयोजन किया गया। अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा, सुशील कुमार, शशि कुमार, आशुतोष कुमार, सत्यजीत कुमार, विद्याशंकर, राकेश कुमार आदि ने भाग लिया। संध्या छह बजे चित्रगुप्त की आरती उतारी गई। इसके बाद प्रीतिभोज में सैकड़ों लोग शामिल हुए।

साहस व स्वाभिमान उनका ओढ़ना-बिछौना था- लालबहादुर शास्त्री







लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरि। चींटी ले सक्कर चली, हाथी के सिर धूरि॥' यह दोहा हमारे देश भारत की महान विभूति लालबहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व पर चरितार्थ होता है। 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय के एक निर्धन परिवार में शास्त्रीजी का जन्म हुआ था। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद शिक्षक थे। जब लालबहादुर शास्त्री डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। 

माँ रामदुलारीजी ने कठिनाइयों से किंतु स्वाभिमान के साथ शास्त्रीजी और उनकी बहनों का लालन-पालन किया। स्वाभिमान और साहस के गुण शास्त्रीजी को अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे। वास्तविकता तो यह है कि साहस और स्वाभिमान लालबहादुर शास्त्री का ओढ़ना-बिछौना था। 

शास्त्रीजी को अपने अध्ययन में रुकावट बर्दाश्त नहीं थी। आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने 1926 में काशी विद्यापीठ से 'शास्त्री' की उपाधि प्राप्त की। इस उपाधि के कारण ही कायस्थ परिवार में जन्मे लालबहादुर को 'शास्त्री' कहा जाने लगा। शास्त्रीजी महात्मा गाँधी से प्रभावित थे। उनके नेतृत्व में संचालित स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण शास्त्रीजी को कई बार जेल की सजाएँ भोगनी पड़ीं, परंतु कारावास की यातनाओं से शास्त्रीजी विचलित नहीं हुए। 

शास्त्रीजी दरअसल महान कर्मयोगी थे। नेहरूजी के प्रधानमंत्रित्वकाल में जब वे रेलमंत्री थे, तब एक रेल दुर्घटना होने पर उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से तुरंत त्यागपत्र दे दिया था। यह शास्त्रीजी की नैतिकता और संवेदनशीलता का सबूत था। 
आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने 1926 में काशी विद्यापीठ से 'शास्त्री' की उपाधि प्राप्त की। इस उपाधि के कारण ही कायस्थ परिवार में जन्मे लालबहादुर को 'शास्त्री' कहा जाने लगा। शास्त्रीजी महात्मा गाँधी से प्रभावित थे।


नेहरूजी के प्रभावशाली व्यक्तित्व के मोहपाश से बँधी भारतीय जनता, जो उनके निधन से स्तब्ध रह गई थी, लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने से वही जनता आश्चर्यचकित रह गई। राजनीति के संतुलित समीक्षक भी तब अपनी टिप्पणियों में संतुलन नहीं रख सके थे। कतिपय समीक्षकों को लगा था कि प्रधानमंत्री के पद पर शास्त्रीजी का चयन स्वभाव से सुसंस्कारी किंतु कमजोर आदमी का चयन है। शीघ्र ही समीक्षकों की शंकाएँ निर्मूल साबित हुईं। अपनी स्वभाविक सहिष्णुता और सराहनीय सूझबूझ से समस्याओं को सुलझाने की जो शैली शास्त्रीजी ने अपनाई, उससेसबको पता चल गया कि जिस आदमी के कंधों पर भारत का भार रखा गया है, वह अडिग, आत्मविश्वास और हिमालयी व्यक्तित्व का स्वामी है। 

शास्त्रीजी प्राणपण से राष्ट्रोत्थान के लिए प्रयासशील रहे। वे राष्ट्रीय प्रगति के पर्वतारोही थे, इसलिए राष्ट्र को उन्होंने उपलब्धियों के उत्तुंग शिखर पर पहुँचाया। उनकी प्रशासन पर पैनी पकड़ थी। राष्ट्रीय समस्याओं के समुद्र में आत्मविश्वासपूर्वक अवगाहन करके उन्होंने समाधान के रत्न खोजे। उदाहरणार्थ- भाषावाद की भभकती भट्टी में भारत की दक्षिण और उत्तर भुजाएँ झुलस गईं तो शास्त्रीजी ने राष्ट्रभाषा विधेयक के विटामिन से दोनों की प्रभावशाली चिकित्सा की। असम के भाषाई दंगों के दावानल के लिए 'शास्त्री फार्मूला' अग्नि-शामक सिद्ध हुआ। पंजाब में अकालियों के आंदोलन के विस्फोट को रोकने में शास्त्रीजी की भूमिका महत्वपूर्ण रही। 

शास्त्रीजी ने अपने प्रधानमंत्रित्व के दौर में देश को परावलंबन की पगडंडी से हटाकर स्वावलंबन की सड़क पर गतिशील किया। उन्होंने 'जय जवान, जय किसान' के नारे के साथ हर क्षेत्र में स्वावलंबी, स्वाभिमानी और स्वयंपूर्ण भारत के सपने को साकार करने के लिए उसे योजना के ढाँचे और युक्ति के साँचे में ढाला। 

सन्‌ 1965 में भारत-पाक युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर विजय, शास्त्रीजी के कार्यकाल में राष्ट्र की उच्चतम उपलब्धि थी। वे अहिंसा के पुजारी थे, किंतु राष्ट्र के सम्मान की कीमत पर नहीं। उनका आदेश होते ही शक्ति से श्रृंगारित एवं आत्मबल से भरपूर भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को परास्त करके विजयश्री का वरण कर लिया था। 

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि लालबहादुर शास्त्री आपदाओं में आकुल और विपत्तियों में व्याकुल नहीं हुए। उस समय जबकि सारा देश ही अनिश्चय के अंधकार में अचेत था, वे चेतना के चिराग की तरह रोशन हुए। उनका व्यक्तित्व तानाशाही के ताड़-तरु की श्रेणी में नहीं, प्रजातंत्र की तुलसी के बिरवे के वर्ग में आता है। भारतीय संस्कृति में तुलसी का बिरवा उल्लेखनीय तो है ही, सम्माननीय भी है।

शोभायात्रा में प्रदर्शित हुए कायस्थ महापुरुषों चित्र



Updated on: Sun, 18 Nov 2012 11:24 PM (IST)

जागरण संवाददाता, आगरा: चित्रगुप्त महाराज के जयघोषों के साथ शोभायात्रा निकाली गयी । जिसमें एकता और प्रेम का संदेश दिया गया। एक दर्जन से अधिक झांकियां इसमें शामिल थीं।
ऑल इंडिया कायस्थ फ्रंट की ओर से शोभायात्रा सुभाष नगर, अलबतिया से निकाली गयी। शुभारंभ एमएलसी रामसकल गुर्जर और पूर्व मेयर अंजुला सिंह माहौर ने किया। शोभायात्रा में गणपति की झांकी के बाद सरस्वती, कलम दवात, पर्यावरण के अलावा कायस्थ समाज के सुभाषचंद बोस, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ.राजेंद्र प्रसाद, स्वामी विवेकानंद की झांकियां विशेष रहीं। अंत में चित्रगुप्त महाराज के झांकी थी। जिसके आगे समाज के प्रमुख जन चल रहे थे।
विभिन्न मार्गो से होती हुई यह शोभायात्रा तहसील रोड स्थित कुलश्रेष्ठ भवन पहुंची। जहां श्रीवास्तव आर्केस्टा ग्रुप के कलाकारों ने भजन प्रस्तुत किये। इससे पूर्व शोभायात्रा के संयोजक डॉ.राहुल राज, सह संयोजक डॉ.अतुल कुलश्रेष्ठ का साफा पहना कर अभिनंदन किया।
कई नगरों से आये चित्रगुप्त अनुयायी
शोभायात्रा में शामिल होने के लिए विभिन्न नगरों से भी कायस्थ जन आये। जिनमें मनोज सक्सेना (अलीगढ़), अशोक श्रीवास्तव (नोएडा), राहुल सक्सेना (लखनऊ), आदर्श सक्सेना (रामपुर), अशोक श्रीवास्तव आदि प्रमुख थे।
सद्भावना का संदेश
शोभायात्रा के स्वागत के लिए विभिन्न चौराहों पर युवक-युवती मौजूद थे, जिन्होंने चित्रगुप्त महाराज के चित्र की आरती उतारी। शोभायात्रा में शामिल अतिथियों का फूल माला पहना कर स्वागत किया। स्वागतकर्ताओं ने सर्वधर्म सद्भावना का संदेश भी दिया। भोगीपुरा चौराहा पर मुस्लिम समाज, रूई की मंडी चौराहा पर सिंधी समाज, काली मंदिर पर गोस्वामी समाज ने शोभायात्रा का स्वागत किया।


कायस्थ समाज ने किया भगवान चित्रगुप्त का पूजन



Updated on: Thu, 15 Nov 2012 08:10 PM (IST)


आजमगढ़ : कायस्थ समाज के लिए प्रमुख पर्व भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा गुरुवार को हर घर में श्रद्धा के साथ की गई। घरों में पूजा के बाद लोग हीरापट्टी स्थित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर पहुंचे और वहां हवन-पूजन करने के साथ भगवान का दर्शन कर आरती की। इस दौरान बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की।
इस पूजा पर्व को लेकर कायस्थ परिवारों में सुबह से ही उत्साह का माहौल नजर आया। सुबह घरों में भगवान चित्रगुप्त का चित्र रखकर तथा उसके सामने धूप-दीप जलाकर जहां पूजा की गई वहीं चित्र के समक्ष घर के उन सदस्य संख्या के अनुसार जो पढ़ने-लिखने वाले हैं के नाम से कलम और दवात रखकर पूजा की गई। कलम और दवात को स्नान कराने के बाद रक्षा और रोली लगाया गया। पूजा के बाद सदस्यों को प्रसाद स्वरूप कलम दिया गया और सदस्यों से माथे लगाकर उसे जेब में रखा।
दूसरी ओर घरों में पूजा के बाद कायस्थ समाज के लोग हीरापट्टी स्थित श्री चित्रगुप्त मंदिर पहुंचे और वहां हवन-पूजन के साथ भगवान का दर्शन किया। दोपहर बाद प्रसाद वितरण हुआ और शाम को भंडारे का आयोजन किया गया। इस दौरान बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमति इंदिरा जायसवाल और सभासद अनूप श्रीवास्तव ने भी पहुंचकर श्री चित्रगुप्त भगवान का पूजन-अर्चन किया।